चित्र मीमांसा के सन्दर्भ में उप्पयीदीक्षित एवं पण्डितराज जगन्नाथ के विचारों का समीक्षात्मक अध्ययन | Chitra Mimansa Ke Sandarbh Mein Uppyidikshit Evam Panditraj Jagnnath Ke Vicharon Ka Samikshatmak Adhyyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुवलयानन्द पर लिखित “*रसिकरजअूजनी' नाम की टीका से टीकाकार गडोघर बाजपेयी द्वारा अप्पय को अपने फ्तिमह के भ्राताका गुरू बतलाया' जाना भी अप्पय को ईसा की सोलहर्वी शती के अन्तिम चरण से लेकर ईसा की सचत्रह्वीं शती के प्रथम चरण तक के काल को ही प्रमाणित करता है | अप्पय दीक्षित, भट्टोजिदीक्षित और पण्डितराजजलगन्नाथ ये तीनों सम सामयिक थे|। ऐसा काणे ने इस प्रकार सिद्ध किया है - 20५५ 0 #८ चित्र मीमांसा 15 त860 5 1709 (1.0. 1652 - उउ 0.) 000 16. रंसगडंगाघर 800 16 चित्र मीमांसा खण्डन फ़टा८ ८0056 1650 शाएँं कील 1641 & 10. घाएत 8६ 016 00 0 8 एए80पा८ एपए0, पीटार्टीाणिट प८ 1 टाकाए 81१19 0 ८5 0666 1620 बात 1660 &..0.* अप्पय दीक्षित द्रविण, भट्टोजिदीक्षित महाराष्ट्री और पण्डितराज जगन्नाथ तैलडंग ब्राहमण थे। तत्कालीन सामाजिक कट्टरता और रूढ़िवादिता के रहते इन तीनों में विरोध होना स्वाभाविक था।. इतना सब कुछ होते हुये भी पण्डितराज ने अप्पय दीक्षित का उन्मुक्त हृदय से स्वागत किया है - द्रविण शिरोमणिभि:, द्रविण - पुंगवै: इत्यादि | चितन्रमीमांसाखण्डनधिक्कार की रचना करके चित्र मीमांसा खण्डन का उत्तर देने वाले अप्पय दीक्षित के भातृपौत्र नीलकण्ठ दीक्षित के 'शिवलीलार्णव' से यह पता चलता है कि इन्होंने सौ ग्रन्थों की रचना की। दुर्भाग्यवश अप्पयदीक्षित की बहुत कम जे 0 पल पलक ली रस पोल एलटी शान १-... अस्मत्पितामहसहोदरदेशिकेन्द्र - रसिकरंजनी २-.. काणे - संस्कुत काव्यशास्त्र का इतिहास - २४८ ३-..... फिरडाएए एप 52150 १0०ला05 - 2716 ४- द्वासप्रतिं प्राप्य समाः प्रबन्धाजूछतंव्यघादप्पयदीक्षितेन्द्र: - शिवलीलार्णव १-६




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