गुप्त - साम्राज्य का इतिहास खंड - १ | Gupta Samrajya Ka Itihas Khand-i

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शुष्त-पूर्व-भारंत॑ हू (६०० ई० पू० 9 गुप्तबंश पर्यन्त श्वनेक साम्राज्यों की बनी रही. ई० चौथी शताब्दी में श्रानेवाले यवन राजदूत मेगस्थनीज्ञ ने इस नगरी की इसी प्रचुर विभूति से प्रसन्न हाकर इसका सुन्दर तथा ललित वर्णन श्रपनी “इन्टिका' नामक पुस्तक में किया था। ई० पू० ३९७ में सुप्रसिद्ध जगत्‌-विजेता मदान्‌ ने भारतवर्ष पर चढ़ाई की परन्तु तत्कालोन प्रबल पराक्रमी भारतीय शासक महापद्नन्द की श्रदूभुत वीरता तथा श्ररंख्य सेना का समाचार सुन उसकी टिंग्मव द्वार गई तथा उसे उल्टे पाँव पंजाय से पड़ा ।. तत्पश्चात्‌ राजनीति के परम श्राचायं चाणक्य ने तत्कालीन राजवंश का नाश कर चम्द्ररुप्त मैर्व्य के राजा बनाया |. इस प्रबल पेराक्मी प्रथम सप्ताद मे शपनी शक्तिशाली भुजाश्रों के द्वारा समस्त भारत के अपने अधीन कर लिया तथा एक विस्तृत साम्राज्य की. स्थापना की । यह महाराज भारत का सर्वप्रथम सम्नादू कहां जाता दे । इसका मद्दाराज श्रशेक राज्य-विस्तार की लिप्ठा के छेइकर कलिड्ं की लड़ाई में हुई नरदर्या का कट श्नुभव कर वैद्धघर्मानुयायी दे गया । मीर्य्य सप्माद अशेक ने देने की उ्कण्टा से चारें दिशाओं में धर्मप्रचार के निमित्त दूत भेज तथा इस उद्योग में वद्द पूर्ण रूप से सफल भी हुआ |. श्रशाक की मृत्यु के पश्चात्‌ विशाल मै।य्यं-सान्नाउ्य ठुकड़ें में विभक्त दे गया 1 दल पू० दूसरी शताब्दी में शुज्नवंशों सेनापति पुष्यमित्र ने अन्तिम मौर्य राजा मो टहहप के सारकर मगध का शासन श्रपने दघीन कर खन्ना तथा करन लिया। इसने विदेशी यवन मिलिन्द ( मिनेटर ) के जोत- शा शातन कर अपने राज्य का विस्तार भी किया! |. इसने प्राचीन वैदिक घर्म के श्रनुसार दे अश्वमेघ यज्ञ भी किये |. दे प्रायः १०० वर्ष तक ने मारत पर शासन किया ।. इनके पश्चात्‌ कुछ काल तक (ई० पू० ७८ से रद तक ) कणव नरेश भी मणध पर राज्य करते रदे । इस समय के बाद कई शताब्दियों तक मगघ का आधिपत्य भारतीय इतिहास से विलुप्त है गया तथा पाटलिपुत्र ने भी साम्नाज्य के केन्द्र हाने का गौरव खा दिया । भारतीय इतिद्ास के रंगमंच पर पाटलिपुत्र के नाम का क्रमश: लेप होने लगा तथा द० सन्‌ की लायी शताब्दी तक--गुप्तें के उत्थान-काल तक --पाटलिपुत्र को गणना भारत के साधारण नगरी में हाती रही । अथवा कद सकते हैं कि इसका तीन से वर्षों तक रहा । १. तव सफेतमानम्य पांचालानू मपुंरों तथा 1 चबना दुष्टविकार्ता: माप्स्यन्वि वा गाज सन नाग अब पर भा र० पु० थे. | सोनम , मां । । २. अपाष्या का लेंस-ना० म० प० भाग प, पू० रे ह




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