बौद्ध धर्म का इतिहास | Bouddh Dharm Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.8 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ० सुनीतिकुमार चाटुजर्या - Dr. Suneetikumar Chatujryaa
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शूमिका
चीनी संस्कृति पर बोद्धघर्म का सामान्य प्रसाव
आज से कोई बीस वर्ष पूर्व एक चाँदनी रात में मेरी माँ ने घर के उद्यान
में बैठकर मुझे कई बौद्ध कहानियाँ सुनाई थीं । पद्चिमी स्वर्ग के का वर्णन
करते हुए माँ ने बताया कि वहाँ की प्रत्येक वस्तु सोने-चाँदी की उत्कृष्ट कारीगरी
से अलंकृत और अमूल्य रत्नों से जड़ी हुई है। वहाँ सुंदर वीथियों से घिरी
स्वर्णिम सिकता में स्थित पवित्र जछ के सरोवर कमल के बड़े-वड़े पुष्पों से
आच्छादित रहते हैं। वह ठोक हर प्रकार से परिपूर्ण और सुंदर है। वहाँ हर
समय स्वर्गीय संगीत होता रहता है। दिन में तीन वार पुष्प-वृष्टि होती है।
जो सौभाग्यशाली नर वहाँ जन्म पाते हैं, वे परलोक पहुँचकर वहाँ निवास करने
वाले असंख्य बुद्धों के सम्मान में अपने वस्त्र छहराने और फुल बरसाने में सम
होते हैं। अंत में माँ ने बताया था कि जिसे हम लोग पद्चिमी स्वर्ग कहते हैं,
वह आज का भारतवर्ष ही है। इन बातों का प्रभाव बचपन में सुझ पर वहुतत पड़ा ।
मिडिल स्कूल तक की शिक्षा समाप्त करने के वाद मैं विश्वविद्यालय में
प्रविष्ट हुआ और वहाँ मैँते पुरातन चीनी उत्कृष्ट साहित्य और चौद्धघर्म का
अध्ययन किया । विद्वविद्यालय .में चार वर्ष व्यतीत करने के उपरांत मुझे यह
स्पष्ट लगने लगा कि संसार भर में चीन और भारत ही केवल ऐसे दो प्राचीन
देश हैं, जिनकी जीवंत सभ्यता एवं संस्कृति हमारी श्रद्धा की पात्र हो सकती है।
इन दोनों देशों में अनेक झताद्दियों तक घनिष्ट संपकं रहा है, लेकिन पिछले
दो हज़ार वर्षों में भारतवर्ष ने चीन की किसी एक वस्तु पर भी लोलुप दृष्टि
नहीं डाली, वरन् उसने हमें महामैत्री और स्वतंत्रता की साधना का आर्य ही
दिया है। उस महानु संदेश के साथ उसके साहित्य, कला और दथिक्षण की
संपदा भी हमारे देश में आई हैं । उसने संगीत, चित्रकिल्प, नाटक और काव्य के
क्षेत्रों सें हमें सदा प्रेरणा दी है। उसके धर्म-प्रचारक अपने साथ ज्योतिप, भायुवेद
और शिक्षण-पद्धति के अमूल्य उपहार भी लाए ; किंतु उन्होंने इन तथा अन्य
उपहारों के प्रदान में कभी संकोच या कृपणता नहीं प्रदर्शित की । बौद्धघ्म पर
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