संध्या का अनुष्ठान | Sandhya Ka Anushthan

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Sandhya Ka Anushthan by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श् संध्याका अनुष्ठान । रहते हैं उसी प्रकार अस्तमय परमात्मासें अपने आपको अनुभव कीजिए । पांच मिनिट इस प्रकार समन स्थिर करनेका यल कीजिए । उ० सत्य यश+ श्रीमेचि श्री श्रयतां साहा ॥। आ. गण. १२४२९ मा. यू. १1९१६ अर्थ--हे 3 परमेश्वर मयि सत्य श्रयतां मेरे अंदर सत्य स्थिर रहे । मयि यश श्रयतां सुझे यद्य प्राप्त होवे । मयि श्री श्रयतां मेरे अँदर दिव्य दक्ति स्थिर रहे और श्री मेरे पास घन रहे । इस लिये मैं स्व-आ-हा अपने स्वेस्वका अपंण करता हूं । मानसिक ध्यान--दे इश्वर सेरी इच्छा है कि अपने आत्मा के अँदर सत्यनिष्टा स्थिर रहे मेरा यश वृद्धिंगत होवे मेरी दिव्य शक्ति बढ़े ओर मुझे ऐहिक सुख साधनोंके साथ आत्मिक आनंद श्राप्त होवे । हे परमेश्वर इस देतुसे में तेरे घर्मकायेकी पूर्णेता करने केलिये अपने सर्वस्व्र का अपण करता हूं । अनुष्टान--इस मंत्रसे जढका एक जाचमन कीजिए । तत्पश्चात्‌ सनमें विचार धारण कीजिए कि सत्य यश ओर श्री इन तीनोंसें सत्य सबसे मुख्य है । सत्यका पावन करने के लिये आवश्यक हुआ तो में यश ओर श्री का टयाग करके सी सत्यका आप्रहके साथ पालन करूंगा । कसी मैं सत्यकों छोडकर यद्य और श्री के लोभसे असत्पकी ओर नहीं जाऊंगा । सत्यका पाठन करते हुए जितना यद्द मिलेगा उतनाही में यश प्राप्त करूंगा। तथा सत्य और यशके साथ जो श्री मिलेगी उतनी मेरे लिये पयाप्त है । सल यश श्री में पहिला सबसे मुख्य और आवइयक है यश मध्यम है ओर श्री गोण है । यहां अपने दैनिक आचरणमसें आप किस प्रकार व्यवहार कर रहे हैं इसका विचार कीजिए और यदि कोई दोष होगा तो दूर कर- नेका यत्र कीजिए. इस श्रकार विचार द्ोनेके पश्चात्‌ हाथ धोनेके नंतर इश्थसे थोडा जल लेकर सुख को स्पश कीजिए और निश्न मंत्र कहिए-- च् न




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