जन्मपत्र प्रदीप | Janmapatra Pradip
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.02 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्२ जन्मम्रचपदीप 4.
अथवा राचिसमय दीपकसे घरके भीतर रवखे हुए सत्र
घट पट आदि पदार्थ प्रत्यक्ष दिखाई देने छगते हैं ॥ १॥
ग्रहा राज्य अयच्छान्ति अ्रहा राज्य हरन्ति च॥
यहैव्याप्तिमिदं सर्व जैठोक्य सचराचरम् ॥ २ ॥
अ्-ग्रहद्दी राज्यको देते हैं और राज्यको हर
लेते हैं; अहॉसिही यह सम्पूर्ण चराचर जगत् व्याप्त हो
रहाहै॥*२॥
प्रायः जन आब इस आर्यावर्तदेशमें फित ज्योतिष-
के विपयमें झांका करते हैं कि-'यह मिथ्या है, यह” उन
छोगोंकी भूरू है, बहुतरे तो फितके गुणकोह्दी नहीं
जानते और जो जिसके शुणको नहीं जानता वह उसकी
निरन्तर निन्दा करता है.
न वेत्ति यो यस्य झुणप्रकर्ष स त॑ सदा निन््द'
ति नात्र चित्रम ॥ यथा किराती करिऊँंभ-
जातां सुक्तां परित्यज्य विभर्ति ॥ ३॥
अथे-जो जिसके गुणको नहीं जानता है वह उसकी
सदा निंदा करता रहे तो इसमें आश्र्ही क्या है? जैसे .
मिल्लिनी गजमुक्ताओंकों त्यागकर घुंबुचियोंको घारण
करती दे ॥ द॥
हजारों छासों जन्मपत्र और वर्पपच चनती हैं, यदि
फलितमें गुण नहीं तो क्यों लोग बनवाकर उसका फल
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