जन्मपत्र प्रदीप | Janmapatra Pradip

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Janmapatra Pradip by पं नारायणप्रसाद सीताराम जी - Pt. Narayanprasad Sitaram Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्२ जन्मम्रचपदीप 4. अथवा राचिसमय दीपकसे घरके भीतर रवखे हुए सत्र घट पट आदि पदार्थ प्रत्यक्ष दिखाई देने छगते हैं ॥ १॥ ग्रहा राज्य अयच्छान्ति अ्रहा राज्य हरन्ति च॥ यहैव्याप्तिमिदं सर्व जैठोक्य सचराचरम्‌ ॥ २ ॥ अ्-ग्रहद्दी राज्यको देते हैं और राज्यको हर लेते हैं; अहॉसिही यह सम्पूर्ण चराचर जगत्‌ व्याप्त हो रहाहै॥*२॥ प्रायः जन आब इस आर्यावर्तदेशमें फित ज्योतिष- के विपयमें झांका करते हैं कि-'यह मिथ्या है, यह” उन छोगोंकी भूरू है, बहुतरे तो फितके गुणकोह्दी नहीं जानते और जो जिसके शुणको नहीं जानता वह उसकी निरन्तर निन्दा करता है. न वेत्ति यो यस्य झुणप्रकर्ष स त॑ सदा निन्‍्द' ति नात्र चित्रम ॥ यथा किराती करिऊँंभ- जातां सुक्तां परित्यज्य विभर्ति ॥ ३॥ अथे-जो जिसके गुणको नहीं जानता है वह उसकी सदा निंदा करता रहे तो इसमें आश्र्ही क्‍या है? जैसे . मिल्लिनी गजमुक्ताओंकों त्यागकर घुंबुचियोंको घारण करती दे ॥ द॥ हजारों छासों जन्मपत्र और वर्पपच चनती हैं, यदि फलितमें गुण नहीं तो क्यों लोग बनवाकर उसका फल




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