गुलिस्ताँ | Gulistha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.49 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्४ गुलिस्ता । बख़ुश दी ओर कहा -- यद्यपि मुक्त तुम्हारी भर्ज पसन्द नहीं है तोभी मैं उसे मंजूर करता ह । तुम लोग नहीं जानते कि जाल ने रुस्तम से क्या कहा था ?--अपने वैरी को कमज़ोर ओर तुच्छ कभी मत समभो । हमने अक्सर देखा है कि सोते से पानी बिल्कुल थोड़ा-थोड़ा निकलता है छेकिन वहीं पीछे इतना बढ़ जाता है कि उस में माल से लदें हुए बड़े-वड़े ऊँट बहने लगते हैं। अछक्िस्सा चज़ीर ने उस लड़के को अपने घर ले जाकर बड़े नाज़ और ने- मतसे पाठा और उसको शिक्षा दी। उसकी तालीम के लिए एक अच्छा उस्ताद मुक़रंर किया । जब वह अच्छी तरह सवाल-जवाब करना और दरबार का ज़रूरी काम-काज सीख गया और लोगों की नज़र में भला जेंचने लगा तद एक दिन वज़ीरने उस के आचार व्यवहार और मिज़ाज के बारे में बादशाह से कहा कि उस लड़के पर अच्छी शिक्षा का खूब असर हुआ है। आगे की मुर्खता अब उस के दिठसे एकदम दूर हो गई है। बादशाहने इस वात पर हँस कर कहा -- भेड़िए का बच्चा यदि आदृमियों के बीच में पाला जाय तोथी वह मेड़ियाही रहेगा। इस घटना के दो वरस वाद उस लड़केंने वस्ती के कुछ नीच और छुन्चों के साथ मिल कर दाँव पाने पर वज़ीर और उसके दोनों लड़कों को जान से मार डाला एवं बहडुतसा माल-असवाव लूर ढले गया और अपने वाप की जगह सूद सरदार
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