मेरी जीवन यात्रा | Meri Jeevan Yatra Vol.-1

Meri Jeevan Yatra Vol.-1 by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्६र७ ई० र. संकामें उसीस सास छ शुरू किया । संस्कृतके धत्यन्त सल्िकट होनेसे पाप्ती मेरे लिये झासान थी झौर भारतमें रहते मेने उसे स्वयं पढ़ना भी धूरू किया था । पढ़नेकेलिये में अपनी पस्तकोंकों इस्तेमाल करता भौर भौगोलिक ऐतिहासिक वातॉपर निधान करके पोछे उन्हें नोटबुक्म उतारता जाता । नायक महास्वविर झाचाये प्र्ञासार देवानन्द झाचार्ये प्रशालोफ हर एकने डेट-इढ़ दो-दो घंटे लेता तो भी मेरी चूप्ति होती । पालीविपिटकर्मे बुद्धगलीन भारतके समाज राजनीति भूंगोलवा चहुतत काफ़ी मसाला हैं । उन्होंने मेरी ऐतिहासिक भूजकों बहुत तेज कर दिया था । पालीटेबस्ट सोसाइटी लंदन के श्रिपिटक संस्करणोंकी विद््तापूर्ण भूमिकाओओने झागमें घी डालनेका काम दिया धौर पालो टेस्ट सोसाइटी जर्नलके पुराने संवोंकोी पड़नेके लिये में मजबूर हुमा । फिर ब्रिटेनकी रायत एसियाटिक सोसाइटी सीलोन घंगाल वंबईकी उसकी शासाम्रोंके पुराने जर्नलॉंका वाकायदा पारायण शुरू हुधा । ग्राह्मों लिपिसे मेरा परिचय हडारीवाग़ जेतमें हुआ या श्रौर यहाँ तो एपीग्राफ़िया इंडिकाकी सारी जित्दे उसट डाली । छे-सात मास बीत्तते-वीतते भारतीय संस्कृतिफी गयेपणाओोंके सम्बन्धमें मेरा ज्ञान गुण श्रौर परिमाण दोनोंमें इतना हो गया था कि जब मारवुर्ग जर्मनी के प्रोफ़ेसर श्रोटो विद्यालंकार विहारमें झागे तो मुझसे बातचीत करके उनको त्तप्नज्जुव हुमा कि में कभी किसी विश्वविद्यालयका विद्यार्थी हीं रहा । वस्तुत इस सारी योग्यताका श्रेय इन कुछ महीनोंके श्रध्ययनको नहीं दिया जा सकता । भव्यवस्थित रूपसे छिटफुट पढ़ते रहनेकी मेरी श्रादत पहले हीसे थी । डॉ ० ए० वी० कालेजमें पंडित भगवहत्तके में की झोर नजर कुछ ज़रूर गई यी किन्तु पूर्व जोंके ज्ञानकी उपयोगित्ताका महत्त्व यहीं साफ़ लगा । जव-तव पढ़े संस्कृतके दर्शन-काव्य प्रन्य घूमते-फिरते वक़्त दृप्टिगोचर हुई भौगोलिक तथा स्यानीय भापायोंकी विशेपतायें--इन सभी तरहके शानोंने मस्तिप्क भझौर स्मृतिके भीतर उयल-पुयल करके एक चैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा कर दिया । ढाई हजार वर्ष पहिलेके समाज शभ्रौर समयमें वुद्धके युवितपूर्ण सरल शरीर चुमनवाले वावयोंका में तन्मयताके साथ भ्रास्वाद लेने लगा । निपिटकमें भ्राये मोजिजें झौर चमत्कार झपनी भ्रसम्भवताकेलिए मेरी घृणाके पात्र नहीं बल्कि मनोरंजनकी सामग्री थे । में समभता था सौ चर्पोका प्रभाव उन ग्रस्थॉपर हो यह हो नहीं सकता । झसम्भव बातोंमें कितनी वुद्धने वस्तुतः कहीं इसका निर्णय झाज किया नहीं जा सकता फिर रारूमें छिपे अज्भारों या पत्थरोंसे ढक रत्नकी तरह बीच-वीचमें झ्ाते युद्के चमट्कारिक वावय मेरे मनकों बलातु अपनी




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