मेरी जीवन यात्रा | Meri Jeevan Yatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्९२७ ईू है २. संव्हाकेलिये प्रस्थान श्र बू आई, किन्तु यह समभनेमें बहुत देर न लगी कि शौक़ीनी भी एक सापंक्ष चीज़ है । जी एक जगहकी शौक़ीनी समभी खाती है, वहीं दूसरी जगह जीवसकी साधारण हो सकती है । लंकाके साधारण लोगोंकी जीविकाका मास हमारे यहाँसे ऊँचा दोनेगे बहाँ इसे सौक्ीनी नहीं कहा जा सकता था । विद्यालकार परिवेण (विष्वार ) में चन्द घंटे ही रहनेके बाद मे; यह तो सालूम हो गया, कि यहाँ भी मुझ वंचित रहना नहीं पड़ेगा; किन्तु भ्रब श्रागें के कार्प-क्रमकों बनाना धा--विद्यार्थी क्या पढ़ना चाहते हैं, और मेरे पाली श्रेध्ययनकों काम करो चलेगा । विद्यालंकार विद्यालय है, यहाँके श्रध्यापक सभी भिक्षु हैं; सिवाय चन्द संस्कृत श्रौर बैद्यकके विद्यारधियोंके, जो कि दिलमें कछ घड़ी पढ़वार चले जाते हैं। १८-२० विद्यार्थी श्रौर तीन-बार श्रध्यापक काव्य, व्याकरण और न्याय पढ़ना चाहते थे । संस्कृत पाली मिला-जुलाबर गुभो भाषाकी दिक्कत नहीं रही, श्रौर संस्कृतकों मैने श्रध्यापनके माध्यमक्ते तोरपर पुस्तेमाल किया ॥ संस्कृत पालीपर निर्भर रहनेका एक परिणाम यह हुआ्रा, कि में लंकाकी भाषा-सिहल जाफों हिन्दीसे नजदीक होनेपर भी सहीं सीख सका विह्ारके प्रारम्भिक श्रेणीसे ऊपरके प्रायः सभी विद्यार्थी आर सारे अध्यापक संस्कृत पढ़ते थे। संस्कृत सी खनेका वहाँका तरीका उत्तर भा रतके पंडितोका-सा पूराना! था । शुरू हीसे व्याकरण रटानेंकी प्रबुत्तिकों छोड़कर मैंने ऐसे तरीक़ेसे पाठ देना ते किया, जिसमें थोड़ा भी परिश्रम और समय लगानेपर बिद्यार्थीकों अपनी सफलताकि प्रति श्रात्मविषदास बढ़े । इसकेलिए पढ़ाते हुए मैंने पाँच पुस्तकों बनाई, जिनमें वार भाषा श्र व्याकरणसे सम्बन्ध रखती थीं, श्र पाँचवीं छन्द-प्रलंकारकी सम्मिलित पुस्तक थी । पहिली तीन पुस्तकें कई बष॑ पहिले ही सिंहल शक्षरमें सिहल भाषाकि साथ छप भी चुकी हूं। व्याकरण पढ़नेवालॉकिलिए लघु रिद्धान्त कौमुदीपर मैंने भाषावृत्ति श्रौर काशिकाको तर्जीह दी । लंका पहिली बारका १८ सासका निवास गम्भीर जीवन था । रात-दिनसें श्राठ नौ घंटे खाने-सोसे-टहलनेसे लगते, बाकी समयमें पाँच घंटे पढ़ाने भर घंटे भ्पने पढ़नेकेलिए निद्चित थे । सबेरेन्तड़के उठ जाता । शीच, मुँह-हाथ थो कूऐंपर जा स्नान कर लेता । ममरेंकें दर्वाजिकों . भेड़ कुछ मिट शीर्षाराल करता । लेबतक पावरोटी, सूप, चीनी सहिजनका सारिथिल-खटाईमें बना हुआ कोल आरा जाता | में कितमे ही दिसोंतक इस बड़े चावसे पीता रहा । उसमें बुक तलछंट बच जाती थी, जो देखने में




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