गोमेध | Gomedh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.82 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्घ गोमांस भक्षण इससे यदि कुछ सिद्ध हो सकता है तो यद्दी सिद्ध होता सकता है कि मांसमोजन उस समय दारू हुआ जिस समय आय लोग पतन कं मार्ग में झक गये थे । प्राचीन ऋषि कालम आय लोग निरामिष सोजी ही थे | ही की ८. ४ । उत्क्रातबाद | यदि उत्क्नांति का वाद सत्य है और यदि मनष्यका शरीर वानर के शरोरसे उत्कांत हुआ है तो यह बात निःसंदेंह माननी पड़ेगी कि मनध्य प्रारंसिक अवस्थामे निरापिष भोजी हो था | क्यों कि बंदर फलमसोजी ही है । वे वक्षोके फल पत्ते आदि खाते हैं । इस ये मनुष्य स्वभावत मांसभोजी नहों हैं । जब चहू जीवन दुपे आता है और फलभोज असंभव हो जानेकी अवस्था प्राप्त होती है तब वह दसरे को मारकर उसका मांस खाता हैं | इसलिये हुप केसे कह सकते है कि आदि वैदिक कालम ऋषिलाग मांस और विशेषकर गोमांस खाते थे । यदि वेंदिक समय मानव जातीका प्रथम अचसर है तो उस समय मानना पड़ेगा कि मनुष्य फल भोजी ही थे | जैसा कि हम देख आप हैं कि ऋषिपंचमी के घतका अन्न कंदमूलफछ ही है वही ठीक प्रतीत दोत। है। 1 ट्र ८ सारस्वत बाह्मणोंकी ग्वाही । आजकल ब्राह्मणोंमें सारस्वत नामके ब्राह्मण हैं । जिनके इति- हासमें लिखा है कि ये सरस्वती नदीके तीर पर रहते थे । अति प्राचीन समयमें बडा अकाल पडा और कई वर्ष बिलकुल चष्टि नहीं हुई और कुछभी फलफूल कंदमूल धघान्य आदि कुछभी मिलना असंभव हुआ । उस समय सरस्वती नदी के तटपर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...