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Licence by मुरानी अमरोहवी

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्घ८ . ख़त पढ़कर मैंने श्रपनी मेज. की ..दराज़ खोली श्रौर उसमें से एक खत निकाला । यह खत भी अहमद नदीम क़ास्मी ने लिखा था श्ौर झाज ही मुक्ते मिला था । अभी कोई मण्टो के आने से चन्द मिनट पहले उसे पढ़कर मैंने मेज़ की दराज़ में रख लिया था । मैंने वह खत मण्टों को दे दिया । लो भई यह एक खत उन्हीं साहब ने मुँके भी भेजा है । इसे तुम फ्ढलो । | मेरे खत में नदीस ने मेरी कहानियों की. तारीफ़ की थी । ख़त का झाखिरी वाक्य था-- श्राप अफ़साना निगारी के रहनशाह हैं । मैंने कहा मण्टो तुम तो सिर्फ़ बाददाह हो हम दहनशाह हैं । तुमसे बड़े हैं । बोलो भ्रब क्या कहते हो । फिर हम दोनों हँसने लगे । नदीम ने हम दोनों के साथ कैसा श्रच्छा मज़ाक़ किया था । मण्टो ने कहा झाश्रो हम दोनों उसे एक खत लिखें शभ्रौर उसे यहाँ बुलायें । पढ़ी-लिखी शरीफ़ घराने की लड़कियाँ उस समय तक रेडियाई ड्रामों में भाग लेने से घबराती थीं । जब मैं दिल्‍ली. श्राया तो सिफ़े तीन-चार लड़कियाँ ही ऐसी थीं जो हमारे ड्रामों में हिस्सा ले सकती थीं । श्रौर जब नये ढंग के ड्रामे लिखे जाने लगे जिनमें मध्यम या उच्चवर्ग के जीवन का चित्रण होता . तो श्रावइ्यकता अनुभव हुई कि श्रपने ग्रुप को बढ़ाया जाय । चुनांचे मैंने बड़ी . कोदिश से दस-बारह लड़कियों का ग्रुप बना लिया था जो हमारे ड्रामों में भाग लिया करती थीं । एक दिन मण्टो ने सु से पूछा देखो भई तुम झ्रपने ड्रामे के लिए कितनी लड़कियाँ ला सकते हो ? कितनी क्या मतलब जितनी कहो । श्रब दून की मत लो । मैं तुमसे पूछता हूँ । पुछते काहेको हो । तुम ड्रामा लिखो । उसमें जितनी चाहो लड़ं- कियां भरलो । मैं ला दूँगा । क अ्रच्छा तो मैं एक ड्रामा लिखुँगा । उसमें सिर्फ़ लड़कियां ही लड़कियाँ होंगी । छब्बीस-सत्ताईस लड़कियाँ रखु गा । मैंने कहा श्रौर उसका नाम रखो-- एक मर्द । ड्रामा लिखा. गंया 1 ब्रॉडकास्ट भी हुआ । हर .पात्र के लिए लड़की भी मिल गई।. .




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