परख | Parkha

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Parkha by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्टे फ्रख बहुत कुछ देखा तो उसी कमरेके एक कोनेमें औधी पड़ी हुई वह किताब मिल गई । कहीं तो पटक देती हो --फिर कहती हो कहीं चली गई १ मैने तो सैंभालके रखी थी । बड़ी अच्छी रक्‍्खी थी । अच्छा अब सबक झुरू करो । सबक झुरू हुआ । वहीं पन्ना खुला -- हैं | ये क्या कर दिया १ देखे | मास्टर साहबने किताब लेकर बड़े गौरसे देखी । कहा कोइ बडा पागल श्रादमी है ....यह तुम्हारा ही खेल तो नहीं हैं |... कै सच कहती हूँ--मेने नहीं किया । सच तो बहुत कहती हो ...फिर कौन कर गया तुमने करा होगा । मैने £--हरे राम राम 1 कितु इस तीन्र विस्मय-बोधकसे लड़कीका संदेड श्र पुष्ट ही हुआ । छूडा-- ६ नदी तो किने दा मैंने ....देखो मै तुम्हारे सामने ही तो बेठा रहा हूँ । हाँ हाँ चुपचाप किताब उठा ली होगी । हरे हरे मै कोई बेवकूफ हूँ हु नहीं जानते। हम तो नहीं पढ़ते । हमे दूसरी किताब लाके दो | कौन लाकि दे १




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