आसन | Aashan

00/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Aashan by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

Add Infomation AboutShripad Damodar Satwalekar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्द ..... आसन । कर कि किम ११ भी की री चि्ल िल चनिध िती ीभिल पल भा पल गे भर अली किक पुरुषोंकी अपेक्षा भी श्रेष्ठ है और कमेकॉडवालॉकी अपेक्षा भी श्रेष्ठ समझा जाता है इसलिये हे अजुन तूं यांगी हो । भ. गी ६-४६ इस प्रकार योगका महत्व है इसलिये योगका आचरण करनेका यत्न करना उचित है। इस योगका अभ्यास हरएक कर सकता हैं । ब्राह्मण शत्रिय वेद्य झूद्र अथवा ज्ञानी झूर व्यापारी आर . साधा- रण जन ये सब योगाभ्यास कर सकते हैं । ख्री आर पुरु- पाकों भी इसमें अधिकार है । तरुण दद्ध अति इद्ध व्याधियुक्त दुबंल तथा ख़ियां आदि सबको इस योगका आधिकार हे । क्यों कि इससे प्रत्यक्ष लाभ होता है इसलिये इसके लाभसे कोइभी वंचित न रहे । जिसके मनमें योगका अभ्यास करने की इच्छा हो वह इसका अभ्यास अवश्य करे । परंतु शठ कपटी दुबेल किश्नोदरपरायण अथोतू कामी और भोगी वेषधारी ढोंगी इस प्रकारके जो छली और कपटी होते हैं वे योगके अधिकारी नहीं हैं ऐसा घेरंडा- चायेका कथन हे ओर वह सत्यभी है । क्यों कि इस प्रका- रके कपटी लोग योग करने लगेंगे तो निःसंदेह अनथे होगा। जो १ दिय्या पढनेमें दत्तचित्त २ जितेंद्रिय रे शांतचित्त ४ सत्यवादी ५ गुत्रसेवामें तत्पर ६ पिता माताकी सेवा करनेवाला ७ विधिकें अलुकूल कम करनेवाला ८ शुद्ध पवित्र ९ स्तानादि क्मोमें तत्पर १० स्वघमंमें श्रद्धा रखनेवाला.




User Reviews

  • 3partition

    at 2022-07-04 12:54:01
    Rated : 0 out of 10 stars.
    2persian
Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now