योगीगुरू | Yogiguru

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Yogiguru by योगीराज परिव्राजक - Yogiraj Parivrajak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्द घ्रत्थकारका निवेदन मनुष्य भूठ-श्रान्तिका दास है; तिस पर मेरी विद्या-वुद्धि हो बहुत ही कम है--ऐसा कहना मी असंगत न दोगा। सदा-सर्वदा मेरे पास तथा श्रातृगण आते-जाते हैं, उनके साथ बात-चीत करते करते एवं प्रयागघाममें छुम्ममेछाके दुर्शनार्थ जानेकी शीघ्रतामें पुस्तककी पाण्डछिपी छिखी गई है ; सुतरां भूढें रहना अवद्यम्सावी है। अतः मराल धर्स्मनुसरणकारी जापक तथा साघकगण दोपांश छोड़ कर स्वकार्य्य॑में प्रदत्त होंगे, तो उनको अपने काममें अवश्य सफलता मिलेगी एवं झ्ुद् ध्रन्थकार भी सुखी होगा । आसाम प्रदेशके गारोहिलकी हाज॑ वस्तीके रहनेबाले मेरे परम मक्त अपत्य-तुल्य श्रीमान्‌ सीताराम सरकार तथा श्रीमान्‌ मदनमोददन- दासने तन-मन-धनसे जेसी सेवा की भर मेरे साधनके काय्यमें जैसी मार्थिक सद्दायता की, उसका उल्लेख करने योग्य चाक्‌-विभव ( शन्दू-संप्रद्द ) मेरे पास नहीं हे। उनके उपकारका- प्रत्युपफार करना मेरे अधीन नहीं है। इस परपिंड-भोजी ( परान्न भोजन करनेवाले ) मिखारीके पास आजकल केवल मात्र आशीर्वाद ही सम्बढछ ( आाधार ) दै; इसीसे काय-मन-वाक्यसे आशीर्वाद करता हूँ; कि विखूपाक्ष-वक्षो-विद्यारिणी दाक्षायणीकी कृपासे उक्त दोनों श्रीमान, स्वस्थ और कार्य्यक्षम शरीरमें दीर्घजीवी होकर वेषयिक तथा आध्यात्मिक उन्नतिके उच्च सोपान पर हों । पातिछद्द्द परगनाके तहसीलदार मेरे प्रियभक्त श्रीउमाचरण सरकार और तदीय पत्नी शीमती देमठता दासीने सर्व प्रकारसे के




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