शैक्षिक अनुसन्धान का विधिशास्त्र | Methodology Of Educational Research
श्रेणी : भूगोल / Geography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.41 MB
कुल पष्ठ :
219
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अरविन्द फाटक - Arvind Fatak
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सच्चिदानंद टोंडियाल - Sacchidand Tondiyaal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द शेक्षिक घनुमंथान का दिविशार्थ
हु से करने चर तथ्पों घौर शिदाप्रों से बह प्रमम्यस्थित रहती है |
(३) चैशानिवनपिधि हे झन्तर्गत श्राउरट्पताधों का मिर्माण होता है ।
प्रोककल्पनाएं रामस्या के सम्भाधित हत हैं । भच्छी शावउर्पनामों का निर्माण भनुन
भव बा बाय दै । श्रतुसरघान की प्रत्येफ अवस्था में प्राफल्यनापों का निर्माण
महत्वपूर्ण हैं कपोकि सामास्य तियसों या सिद्धार्तों को सदा पूर्ण सत्य के रूप थे सान-
कर उनका उपयोग नहीं किंपा नां सकती 1 छितनी प्राइकल्पनाएँं घनुसन्वानकर्ता की
सूमेंगी ? पहुं उसकी बल्पना शक्ति पर निर्मेर करता है । श्रास्वत्यना का निर्माण
एक ऐसे निक्ियित रूप में किया जाना चाहिए जिशका परीक्षण तकें दिशान द्वारा
हो सके 1
(४) बैनानिक विधि तर्कपूर्ण है। वास्तव मे दैनानिक-त्रिधि का सम्पूर्ण
डाँचा तकों के रूप में है। तर्क हो वे नियम हैं जिनके भाषार पर बैज्ञातिक झपती
विधि के प्रह्पेक पद का तथा उपपोग थे साई जाने वाली तयां लाई गई प्ररपेक प्रदिधि
(प्रॉनेड्सुर) के ध्रौधित्य ना भर उपयुक्तता का परीक्षण करता है । बह प्रपने निष्कर्ष
की संत्यता का भी गरीक्षण तक की कसौटी पर करता है । संक्षेप में विशानें पुष्ठ
प्रमाणों पर ही खड़ा रहता है ।
(५ बैज्ञातिक-विधि सशपात्मक है । भर्यात इसका प्रत्येग पग संशय से
उठता है। जहाँ बड़ी भी थोड़े से प्रपर्याप्त प्रमाण दिखाई देते हैं वहीं विज्ञान सणय
करने लंगता है। सशप के दो कारण हैं। एक तो यह कि ध्रपर्याप्त प्रमाणों पर
पाघारित हमारे विश्वास सत्य नहीं हू सकते 1 थदि हुमारा विश्वास हढ़ शधिक है
सो यह श्रम नहीं होना चाहिए कि वढ़ सत्य भी उतना हो भ्रविक् है । दूसरा कारण
यह है कि कोई भी तथ्प जो प्रयाग से भापा है चिरतन प्रमाण पर भाषारित नहीं
है । परत कोई मी तथ्य संशय से पूर्ण रूप से परे भ्डीं है । इसी कारण सिद्धासतवाद
शनदू परिवनिन पौर परिष्कृद दिए जाते रहे हैं। सिदान्तवादी पा परीक्षण हपा
सत्यापन भी मी पूर्ण तया शुद्ध मी होता । बहू केवल सत्य के भ्रधिक निकट
से जाने बाला हो राकता है ।
(६) बैज्ञानिक-विि भ्रार्मशुद्धिकारक है बंज्ञानिक-दिधि में पप्र पग पर
भपने को परतति नी योजना रहतों है । यद परसने की व्यवस्था इस प्रकार होती है
कि डिज्ञानवेत्ता की प्रत्येक लिया नियसित होती रहे दया सत्यापित होड़ी रहे । यह
निपत्रण भौर सत्यापन तेबतर चलता रहना है जवपरू कि वैज्ञानिक तुलनारमक
रूप में प्धिव विश्वसनीय परिसामो पर ने पहुंच जाएं । तियस्व्रणा सौर सत्यापन
का उद्श्य उसके दिसन भर श्ावररा को वरतुनिष्ठ बनाना है सह वह झपने को
विस्मृत कर झनुसघान कर राके 1
पिंशान कभी दावा नहीं करता छि जी कु सोज कर वह प्रकाश में लाता
है बहू शेशप रहित परम रात्य है। न दद कभी यदू कदूवा है कि जौ दहु कइना ड्
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