भक्तराज हनुमान | Bhaktraj Hanuman
श्रेणी : पौराणिक / Mythological, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.17 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्दे भक्तराज हनुमान
उन्होंने हलुमान्को शाप दे दिया कि “तुम अपने बलकों भू
जाओ । ज्र कोई कमी तुम्दे तुम्हारी कीर्तिकी याद दिलावेगा,
तब तुम अपने वलका स्मरण करके पुन: ऐसे ही हों जाओगे ।'
दनुमान् अपना बल भूल गये ।
अब उनके विद्याव्ययनका समय आया, वानरराज केसरीने
उचित संस्कार कराके वेदाध्ययनके लिये उन्हे सूर्यके पास मेज
दिया । वहों जाकर हनुमानने समस्त वेद-वेदाड्ठोका अध्ययन किया )
उन्हें अध्ययन तो क्या करना था, वे साक्षात् शिंव थे; तथापि
सम्प्रदाय-परम्पराकी रक्षा करनेके छिये उन्होंने सम्पूण विद्याओंका
अध्ययन किया । थोड़े ही दिनोंमे वे अपने माता-पिंताके पास लौट
आये । सूर्यकी कृपासे अपने पुन्रकों स्वबिधापार्डत देखकर माता-
प्ताकों वड़ा आनन्द हुआ ।
है ९ है श्र
भगवान् राम अवतीर्ण हो चुके थे । भगवान् शंकर उनकी
बाल-दीलाका दर्शन करनेके लिये प्राय: ही अयोध्यामें भाते और
अयोध्यामं ही रहते । वे किसी दिन अ्यीतिी बनकर भगवानका
दाथ देखते तो किसी दिन मिक्षुक बनकर उन्हे आशीर्वाद दते ।
जब भगवान् ग़म खेठनेके लिये महलसे बाहर आने गे, तब एक
डिन एक मदारी आया । उसके साथ एक परम सुन्दर नाचनेवाला
बंदर था. । मदारी डमरू बजाता इआ राजमहलकें फाटकपर
. जा पहुँचा । बहुत-से ठड़के इक्ट्ठें हो गये, भगवान् राम भी अपने
भाइयोकि साथ आ गये । यह बंदर साधारण बंदर थोड ही था
यह तो अपने भगवानकों ड्झानिके लिये ही हनुमानरूपमें प्रक
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