भक्तराज हनुमान | Bhaktraj Hanuman

Bhaktraj Hanuman by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्दे भक्तराज हनुमान उन्होंने हलुमान्‌को शाप दे दिया कि “तुम अपने बलकों भू जाओ । ज्र कोई कमी तुम्दे तुम्हारी कीर्तिकी याद दिलावेगा, तब तुम अपने वलका स्मरण करके पुन: ऐसे ही हों जाओगे ।' दनुमान्‌ अपना बल भूल गये । अब उनके विद्याव्ययनका समय आया, वानरराज केसरीने उचित संस्कार कराके वेदाध्ययनके लिये उन्हे सूर्यके पास मेज दिया । वहों जाकर हनुमानने समस्त वेद-वेदाड्ठोका अध्ययन किया ) उन्हें अध्ययन तो क्या करना था, वे साक्षात्‌ शिंव थे; तथापि सम्प्रदाय-परम्पराकी रक्षा करनेके छिये उन्होंने सम्पूण विद्याओंका अध्ययन किया । थोड़े ही दिनोंमे वे अपने माता-पिंताके पास लौट आये । सूर्यकी कृपासे अपने पुन्रकों स्वबिधापार्डत देखकर माता- प्ताकों वड़ा आनन्द हुआ । है ९ है श्र भगवान्‌ राम अवतीर्ण हो चुके थे । भगवान्‌ शंकर उनकी बाल-दीलाका दर्शन करनेके लिये प्राय: ही अयोध्यामें भाते और अयोध्यामं ही रहते । वे किसी दिन अ्यीतिी बनकर भगवानका दाथ देखते तो किसी दिन मिक्षुक बनकर उन्हे आशीर्वाद दते । जब भगवान्‌ ग़म खेठनेके लिये महलसे बाहर आने गे, तब एक डिन एक मदारी आया । उसके साथ एक परम सुन्दर नाचनेवाला बंदर था. । मदारी डमरू बजाता इआ राजमहलकें फाटकपर . जा पहुँचा । बहुत-से ठड़के इक्ट्ठें हो गये, भगवान्‌ राम भी अपने भाइयोकि साथ आ गये । यह बंदर साधारण बंदर थोड ही था यह तो अपने भगवानकों ड्झानिके लिये ही हनुमानरूपमें प्रक




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