शांति, संघर्ष और प्रेरणा | Shanti Sanghrasha Prerna

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Shanti Sanghrasha Prerna  by सत्यप्रसाद पाण्डेय - Satyaprasad Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र त्यौहार ? प्र नहीं तो ? तुम्हारी भाभी के अतिरिक्त शान्ति संघर्ष एवं श्ौर भी कई सुबह से प्रतीक्षा कर रहे हैं । यह तो मानोगे ही कि तुम्हारी भाभी के लिए मैं पुराना हूँ पर श्रभी तुम पुराने नहीं हुए । पहली बार ही तो देखेगी तुम्हें । मेरे ब्याह के समय तुम रुके ही कितने थे ? जीवन के श्रन्दर एक सिहरन सी उठी । दोनों भाई ताँगे पर बैठ गये प्रौर ताँगा लखनऊ की चौड़ी सड़क पर चतने लगा । खोया हुमा सा जीवन मन ही मन सोच रहा था कि देखें क्या मिलता है उसे देखने श्रौर सुनने को। संघष श्रौर शान्ति उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। तो क्या संघष थी लखनऊ श्रा गया है ? भ्रब तो बड़ा हो गया होगा। दाढ़ी-मुखें उग श्राई होंगी । छः महीने ही वो बड़ा था उससे संघर्ष । पर शान्ति कौन है ? कया शान्ति संघष की जिब्बी ? गजी 1 सिगरेट तो पीते हो न ? भय्या ने गोल्ड फ्लैक का पैकेट बढ़ाते हुए कहा । जीवन ने हँसते हुए सिगरेट निकाली । घुम्रों छोड़ते हुए बोला संघर्ष यहाँ कब श्राया भय्या £ तकरीबन दो साल हो गए हैं। मंदट्रिंक करने के बाद २-३ साल तो घर पर ही रहा । कामताप्रसाद जी ने नौकरी की व्यवस्था कर दी इसीसिये यहाँ आा गया । श्ब तो बहु सेन्नेटेरियेट में है । सकया वेतन है ? परे वेतन क्या होना है जूनियर क्लर्क है। लापरवाही से भरुवन बोला । जीवन चुप हो गया । पूछना चाहता था कि संघर्ष की शादी हो गई है पर यकायक पूछना ठीक न समझा । लेकिन शान्ति के प्रति उसके मन में जिशासा थी उसको उसने दबाना ठीक ने समझा कौन है भैया ? तुम नहीं जानते क्योंकि मेरी स्वसुराल से तुम्हारा विदवेष परिचय नहीं




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