अंतरिक्ष एवं नक्षत्र विज्ञान | Antariksh Avam Nakshatra Vigyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)2. नक्षत्र-बिज्ञान
नकद किन नो जलकर टेनकेक दे, 555 दे दिया ठेके 5
नक्षत्र-विज्ञान ज्योतिप का आकर्स्मिक प्रतिफलन है। जैसा कि अब सामान्य ज्ञाम
है, जनेक क्रारणों से मनुष्य की नक्षवों का अध्ययन करना पड़ा, जिसकी परिणति
ज्यीनिप-शास्त्र में हुई। इस अध्ययन के अंतर्गत ही उसे क्रमशः प्राकृतिक नियमी
का आभास पिंना । हालांकि अव्यवस्था में व्यवस्था के दर्शन वड़ी धीसी गति से हुए
क्योंकि मनुष्य को समक्ष सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रश्न तो उसके अपने अस्तित्व का था।
फिर भी उसकी दृष्टि एक-एक करके अनेक तथ्यों पर पड़ी ।
एस यह पता लग गया कि सूर्य नियमित रूप से उदय और अस्त होता है।
दिन के बाद सन और रात के बाद दिन की आवृत्ति होती है तथा इस प्रक्रिया मे
जी परिवर्तन मत है, वें नियमित हि । इसी प्रकार चांद क्रम से घटता-वढ़ता है । कतुओं
का व्यवस्थित रीति से होता है। पेड-पीधे, पशु-पक्षी तथा स्त्री-पुरुषप उत्पन्न
होते, यढ़ते और समाप्त हो जाते हैं। इन भोतिक तथ्यों पर दृष्टि पड़ने से उसे यह
स्पष्ट होने लगा कि उसके ससार में जो अव्यवस्था है, घह किसी व्यवस्था का बाहरी
स्वरूप है। सभवतः इस ज्ञान को उदय ही विज्ञान की-नक्षत-विज्ञान का उदय है।
क्योकि विज्ञान भी जाखिर उन भीतिक नियमों का विशेष ज्ञान ही है, जिनके शासन
में सुप्टि का क्रमिक विकाम हो रही है।
प्रथम खगोल-शास्त्री होने का श्रेय चाहे किसी भी तत्त्वदर्शी का अधिकार हो
परतु ऐसा समझा जाता है कि विज्ञान” से जिस विशेष ज्ञान का बोध छोता है, उसका
आय साधारणत, युनान के निवासियों को है। यों ऋग्वेद के दुरदर्शी ऋषि ने यूनानियों
से पहले ही धह घोषणा कर दी थी' कि चंद्रमा के पास अपना प्रकाश' नहीं है-उसने
सुर्य का प्रकाश प्राप्त किया है :
इंदा सोमा महिं तद्ी महित्व युर्व सहानि प्रथमानि चक्रचुः ।
युवं सु्य॑विविद्युरयुवं स्वर्विश्वा समोस्यहतं निदश्व । 1
अर्थात है इंद्र-सोम, आपकी शक्ति महान है । आपने प्रथम महत्तू कार्य किए |
आपने सुर्व को प्राप्त किया-प्रकाश को.प्राप्त किया । आपने अशेष अंधकार और
निंदा को समाप्त किया
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