साहित्य निबन्धावलि | Sahitya Nibandhawali

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Sahitya Nibandhawali by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankratyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र साहित्य निवन्धावल्ति झादि जिज्ञोंकी भाषा दरियानी पंजाबी दिन्दकी मारवाड़ी मेवाड़ी मालवी छुत्तीसगढ़ी बघेलखण्डी आदि जो स्थानीय भाषायें है उनका बृढतू शब्द-कोष तैयार किया जाय श्र उनसे इस तरह के सामान्य शब्दोंको लेकर हिन्दी-कोषमें रख दिया जाय । वेसे भी यदद ऐसा समय है जबकि स्थानीय भाषाओं पर हिन्दीका इतने जोरसे प्रभाव पड़ रहा है कि उनके बहुत से शब्द श्र सुद्दावरे छूटते जा रदे हैं तर उसके कारण दिन-पर-दिन उनकी उपयोगिता वेज्ञानिक झन्वेषणके लिए कम होती जायगी । इसके लिए स्थानीय भाषाओकी कथाशओ शोर गीतों झर्थात्‌ उनके मोखिक गद्य पद्य साहित्य श्रौर इस झघारपर बने व्याकरण तथा इदत्‌ शब्द-कोष कं बढ़ी आवश्यकता है । जिससे उनमें उपलब्य वेज्ञानिक सामग्रो सुरक्षित हो जाय । न्याकरणु हिन्दी ब्याकरणको भी झब हमें भाषाके सावदेशिक रूपको ध्यानमें रखकर कुछ जोड़ना घटाना होगा । पायिनिने भी अपने ब्याकरणमें उदीची पंजाब प्रदीची युक्तप्रान्व बिज्वारके खयालपे कितने दी इस तरदइके मतभेदोको स्वीकार किया है। इसका यह रथ नदीं कि गलत- सदी जेसे भी लिंग या उच्चारण किये जा रे हैं उन समीको हमें स्वीकार कर लेना चाहिये । हाँ जिसके लिए. हमें संस्कृत प्राकत तथा श्रनेक स्थानीय भाषाश्रोमे उदादरण मिलता है उसे स्त्रीकार कर लेसेमें कोई इज नहीं । यहाँ फिर स्थानीय भाषाझोंकी झावश्यकता है । लिपि डुनियामें दरएक चीज़ें बराबर परिवतंन होता रहता है श्रौर भाषा भी इसका श्पवाद नहीं दो सकती । लेकिन बहुतसे लोग इस बातकों मनमे न लाकर उसे पकड़कर स्थिर रखना चाइते दें । यद मनोइत्ति कही भी दानि छोड़ लाभ नहीं पहुँचा सकती । दमें हइरएक क्रान्तिकारीसे क्रान्तकारी परि बतंनके लिए तैयार रइना चाहिये यदि दमें बतला दिया जाय कि वह युक्ति-युक्त श्रौीर लाभकारी दै । वेदिक भाषा लाख छुन्द-बन्ध लगाने पर भी जीवित नहीं रद सकी श्र शाष सस्कृतने उसका स्थान लिया श्ौर वह मी क्रमशः प्राकृत अपभ्रश आदिके रूपोंमें बदलती गई । अचरोंको भी इम जआझी गुप्त कुटिला मागधी मैथिली नागरी झादि रूपोमे परिवर्तित दोते देखते हैं । जब परिवतनका नियम ऐसा दल है तो हमें किसी बातकों नबरदस्ती पकड़ रखनेके लिये आग्रह नहीं करना चाहिये । हमें सिफ इतना




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