प्रबोध चन्द्रोदयनाटक | Prabodh Chandrodaya Natakaah

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Prabodh Chandrodaya Natakaah by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीगसोशायनमः श या यमन मी ही ७ न लि व 1 कारक नीदक फाुत्र पे कीत्त अराजा गुपालमंत्री साधु समागम नट समाज वातों- कीतित्रह्म महाराज की सभा में साथ समागम नामी नट अपर निज सहायक .रूपयोबन गर्वित. परुष ख्री . संपूर्ण बीणा मदंग सितार आदि यंत्रलेकर प्रवेश गान करनेलगे पश्चात सट कहता हैं .. नद- भुजा -उठाकर अहो समस्त तंत्रीगणुद्दी किचित्‌ समयपथत येत्रों को मोनकरके श्रवणकरों फिर निज ख्रीसेकदताहै देमगनेनी कोकिलंबेनी मेरीप्रिया आज मद्दादू सुखदायक एक त झाकाश ब्राएी हुई है जिंसंकें. श्रवण करती में शिरपर से झभिमान का भार गिरमया जिस से अब में फेलाकर सुख पूर्वक सोताईइ-- नरी- हसकर अडो प्राणपति मीतम किये वह बाली किसने कही और उसमें कया कहा- नट-हे प्रिये जो पुरुषप्रकाशमय प्रसिद्ध अविगत अधिनार्शी जगत प्रकाशी जिसके रोम रोम में त्रद्यांड हू और सबको सूखदायी सुखधाम सर्वन्यापक परम नदड़े और अकल




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