कवि - भारती | Kavi Bharti
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra,
श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao,
श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao,
श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.51 MB
कुल पष्ठ :
740
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra
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श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao
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श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीघर पाठक
धजो छुछ प्रेम-ंदा पृथ्वी पर, जय दय पाया जाता हैं ;
सो सब इुद्ध कपोर्तो ही के दुछ में सादर पाता है 1
घन-वैमद आदिक से भी, यद ये था प्रेमनविचार ,
ढुधा सो अशान जनितं, सय सत्व झूत्य निर्छार !
गबड़ी छान दे युवा पुदुप, नदि इसमें तेरी शोभा है ;
तज तेझणी का ध्यान, मान, सम जिसपर हेरा लोमा रेत?
इतना कइते हो योगी के, हुआ पथिफ कुछ और ,;
छाजनरुद्दित संकोच-भाव सा साया मुख पर दौर ।
अति आधचर्य दृब्य योगी या यों दृष्टि अब आता दै ,
परम लछित लावणूय रूपानिधि, प घफ प्रकट बन जाता है |
ज्यों प्रमा्त अरुणोदय बेला विमठ वर्ण साफाद ;
स्पॉडी मुतत बटोद्दी की छवि अ्रमनक्रम हुई प्रकाश 1
नीचे ने, उध् वश्नछल, रूप ठया फेलाता है ,
दानैः दानिः दर्शक के मन पर, निज झषिकार जमाता है |
इस स्वरित्र से चैरागी को हुआ शान तत्वाल
नहीं पुरुप यद पंथिफ विलझण किन्तु सुन्दरी याछ है
“छिमा, दोय अपराध साधुया, हे दया'ठ सदूसुणराशी !
साग्य दीन एक दीन विरिनी, है यद्ार्थ में यह दाष्ी |
किया, अशचि भाकर मैंने, यह आधम परम पुनीत ,
सिर नवाय, कर जोड़, दुपिनी बोठी वचन विनीत है
+
“शोचनीय मम दशा, कथा में कईूँ आाप सो मुन छीजे ,
ब्रेम-ध्पथित अुबला पर अपनी दया इष्टि योती कोचे |
केवल प्रथम प्रेरणा के वदा छोड़ा अपने! रेह 1
घारण किया प्राणपति के दित, पुरुप-देप निज देह ]
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