कवि - भारती | Kavi Bharti

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Kavi Bharti by डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendraश्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Raoसुमित्रानंदन पंत - Sumitranandan Pant

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श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao

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श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीघर पाठक धजो छुछ प्रेम-ंदा पृथ्वी पर, जय दय पाया जाता हैं ; सो सब इुद्ध कपोर्तो ही के दुछ में सादर पाता है 1 घन-वैमद आदिक से भी, यद ये था प्रेमनविचार , ढुधा सो अशान जनितं, सय सत्व झूत्य निर्छार ! गबड़ी छान दे युवा पुदुप, नदि इसमें तेरी शोभा है ; तज तेझणी का ध्यान, मान, सम जिसपर हेरा लोमा रेत? इतना कइते हो योगी के, हुआ पथिफ कुछ और ,; छाजनरुद्दित संकोच-भाव सा साया मुख पर दौर । अति आधचर्य दृब्य योगी या यों दृष्टि अब आता दै , परम लछित लावणूय रूपानिधि, प घफ प्रकट बन जाता है | ज्यों प्रमा्त अरुणोदय बेला विमठ वर्ण साफाद ; स्पॉडी मुतत बटोद्दी की छवि अ्रमनक्रम हुई प्रकाश 1 नीचे ने, उध् वश्नछल, रूप ठया फेलाता है , दानैः दानिः दर्शक के मन पर, निज झषिकार जमाता है | इस स्वरित्र से चैरागी को हुआ शान तत्वाल नहीं पुरुप यद पंथिफ विलझण किन्तु सुन्दरी याछ है “छिमा, दोय अपराध साधुया, हे दया'ठ सदूसुणराशी ! साग्य दीन एक दीन विरिनी, है यद्ार्थ में यह दाष्ी | किया, अशचि भाकर मैंने, यह आधम परम पुनीत , सिर नवाय, कर जोड़, दुपिनी बोठी वचन विनीत है + “शोचनीय मम दशा, कथा में कईूँ आाप सो मुन छीजे , ब्रेम-ध्पथित अुबला पर अपनी दया इष्टि योती कोचे | केवल प्रथम प्रेरणा के वदा छोड़ा अपने! रेह 1 घारण किया प्राणपति के दित, पुरुप-देप निज देह ]




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