श्री शक्तिगीता भाषानुवादसहिता | Shrishaktigeeta Bhashanuvadsahita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.27 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीशक्तिगीता । ट्
श्रावये शक्तिगीतां तामिदा्नी श्रूयतां खल। '
. महदादेवीपदाम्भोजचअरीकडदा लया ॥ ११ ॥
गीतेय॑ सारभूताइस्ति सव्योंपानपदां हिता .।
निष्कर्पः सर्ववेदानां जननी ज्ञानवचेसाम ॥ १२ ॥
पुरा देवामुरे युद्धे साक्षाह्रसस्वरुपिणीम ।
जगदस्वां महाटेवीं समाराध्य दिपोकस! ॥ १३ ॥
विविधेरिधिभि। सूत ! विजय लापिरे यदा ।
अम्वायज्ञमनुष्याय ततस्ते विधिएवक्म ॥ १४ ॥
दिटशाअक्रिरे देवी विधूतकटमपास्तदा ।
तस्मिन-काले तु देवपनीरदस्योपटेशुत। ॥ १५ ॥
विविद्षियुधा। सर्वे यन्पणिद्वीपपुनमण ।
तेयेचप्यस्विकालोक समासाथ मोखरी ॥ १६ ॥
दर शक्या तथाधप्येते सर्व्वे गन्तें न शकतुयु।
तत्र देवा! कियन्तस्तु कियन्माजपयरतथा ॥ ९७ ॥
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मददादेवीके पदरूपी कमलमें सदा लीन रहता है ॥ ११ ॥
यह सब उपनिपदोकी साररूपा, चेदोका निप्क्ष और शानज्योति
की जननी है ॥१२। पुराकारलंमं जब सात्तात् प्रह्मरुपिणी जगन्मात-
रुपघारिणी महादेब्रीकी शनेक प्रकारसे उपासना करके देवताशोने
देवासुर संग्राममं जय प्राप्त किया था और इस जयलामके अन्तर
विधिपूर्वक श्रम्यायप्रका अनु्टान कर ' चिधूतकट्मप होकर महावे-
वीके दर्शन छा करनेकी उन्होंने इच्छा कीथी, उस समय देवर्षि
मारदके उपदेश द्वारा उनको यह दिद्ित हुआ था कि यद्यपि देवी-
लोकरूपी 'मणिद्वीपमें जाकर जगन्माताका दर्शन प्राप्त हो सक्ता है
- परम्तु घहां सब देवता पहुंच. नहीं सक्ते, फेचठ कुछ देवता और झछ,.
फऋषिगण दी पहुँचनेकी सामर्थ्य रखते हैं, सोभी महादेवीकी ' कृपा
1 थ ः
र्ग
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