प्रनोत्तर श्रीवकाचार | Prashnottar - Shravakachar

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Prashnottar - Shravakachar by जैन मित्र - Jain Mitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा सगे | नदत 4३२५ २३२९५ ७:००२३०२७:०९२७०१७९३२७००७२४१९१७९७०६७२१७७७७१७६९९७ जल कायिककी सात छाख, नित्य निगोगकी सात छाख, इतर निगीदकी सात लाख, वनस्पतिकायिककी दश छाख, द्वींद्रिय जीवोंकी दो लाख, द्रिय जीवोंकी दो छाख, चोइंद्विय जीवोंकी दो छाख, तिय॑च पंचेद्विय जीवोंकी चार छाख, देवोंकी चार छाख, नारकियोंकी चार छाख ओर मनुष्योंकी चोदह छाख इस प्रकार जैन शाखोमें जीवोकी सन चौरा्ती -खाख योनियां बतखाई हैं। तत्वोके जानकार जीर्वोको आयु काय आदिके भेदसे ये सब योनियां जान लेनी चाहिये॥ १७-१५९॥ जो चौदह गुणस्थान और चौदह मार्गणाओंमें रहे वह भी संसारी जीव ही समझना चाहिये। इस प्रकार सम्यग्दशनको विशुद्र करनेके लिये चुद्धिमानोंकों जीव तत्तका स्वरूप समझ लेना चाहिये || २० ॥ तत्वोंके जानकार जीबोंको अजीव तत्तके पांच भेद समझने चाहिये। घमे, अधमे, आकाश और काल चार तो ये हैं, ये चारों ही पदार्थ उत्पाद, व्यय ओर प्रो5्य॑ स्वरूप हैं तथा पांचवां अजीव तत्त ঘুর है उसमें स्पशे, रस, गन्ध, वर्ण गुण हैं और वह अणु स्कन्ध आदि भेदसे अनेक प्रकारका है । यह पुद्रक जीवको सुख दुःख भी देता है ॥| २१-२२ ॥ घर्म द्रव्य असंख्यात प्रदेशवाछा 'है और अमूत है तथा जिप्त प्रकार मछलियोंके चलनेमें पानी सहायक होता है उसी प्रकार यह घम॑द्रभ्य भी जीव ओर्‌ पुद्रछोके गमन करनेर्मे सहायक होता दहे ॥ २३ ॥ अधमं द्रव्य अमूत हे, क्रिया रहित है ओर जिस प्रकार पथिकोंके ठद्दरनेमें छाया सहायक होती है उसी- अकार यह अधमे द्रव्य भी नीव पुद्ठछोके ठहरनेमें सहायक होता है ॥ २४ ॥ आकाशके दो. भेद हैं-एक छोकाकाश दूसरा अछोकाकाश । ज्जो जीवादिक समस्त पदार्थोको जगह दे सके उसे आकाश कहते




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