पाकिस्तान का प्रशन | Pakistan Ka Prashan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पाकिस्तान का प्रश्न तेरद्द
है। इस समय उस पारस्परिक विरोध की नीव पड़ी जिसके
कारण हिन्दू-सुस्लिम समभौता एक स्वप्न की वस्तु हो रहा है
ओर बड़े बड़े नेता यह सिद्धान्त प्रतिपादित कर रहे हैं कि
दोनों का कल्याण उनका पारस्परिक सम्बन्ध विच्छेद करने
में ही है। १ अक्तूबर सन् १६०६ को प्रातः काल हिज दाइनेख
दि आगा खों के नेढत्व सें मुसलमानों के एक डिप्यूटेशन
ने लाडे मिन््टो से मिलकर अपनी शिकायतें तथा आकांक्षाएँ
अ्कट की । उन्होंने साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की माँग की।
इस डिप्यूटेशन ने विभाजन का जो कायं पूरा किया वह् पूवे-
वर्त्ती बाइसरायों की कुटिल नीति भी नही कर सकी थी।
ओर इसके पीछे थे कौन ? बेक साहब के उत्तराधिकारी श्री-
आचंबोल्ड । इसमें इन्हीं महाशय की कुमन्ञणा का सहयोग
था। ऐसा प्रतीत होता है कि आवेदनपत्र लिखने तक में
इन्होंने सहायता पहुंचाईं थी । अपने १० अगस्त सन् १६०६ के
पत्र में आप तवाब सोहसीनुल्म् लक को लिखते है, मै तो यह
सलाह दंगा कि हम राजभक्ति की सावना की अभिव्यक्ति से
आरम्म करें। स्वायत्तशासन की दिशा में सरकार ते जो
कदम बढ़ाने का निश्चय किया है उसकी तारीफ की जानी
चाहिए, किन्तु हमे अपनी आशङ्का व्यक्त करनी चाहिए कि यदि
चुनाव का सिद्धान्त लागू किया गया तो वह म् स्लिम हित
के विरुद्ध होगा। अतः आदरपूवक यह सुझाव पेश किया
जाय कि म्.रिलिम जनसत को सन्तुष्ट करने के लिये नासजदगी
या धमः के आधार पर प्रतिनिधित्व का सन्निवेश किया जाय |
हमें यह भी कहना चाहिए कि मारत ऐसे देश में जमीदासें
के विचारों को डचित महत्त्व प्राप्त होना चाहिए |! और वास्तव
में हर एक बात इस गुप्त मन्त्रणा के अनुसार हुईं ।
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