गल्प संसार माला (भाग - 1: हिंदी ) | Galp Sansaar Mala (bhag - 1: Hindi)
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
जयशंकर देवशंकर शर्मा - Jayshankar Devshankar Sharma,
जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar,
प्रेमचंद अज्ञेय - Premchand Agyey
जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar,
प्रेमचंद अज्ञेय - Premchand Agyey
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
जयशंकर देवशंकर शर्मा - Jayshankar Devshankar Sharma
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जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar
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प्रेमचंद अज्ञेय - Premchand Agyey
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द त्प-सं लां
प्रसचंद ] | गल्प-संसार-भा
सुनी जाती है। मेरे पास पैसे नही है। तभी वो मोहसित और महमूद यो
मिजाज दिखाते है। में भी इनसे मिजाज दिखाऊँगा। खेले खिलौने और
खायँ मिठाइयाँ । में नहीं खेलता खिलोने, किसी का सिज्धाज व्यो सहूं।
गरीब सही, किसी से कुछ मॉगने तो नहीं जाता। आखिर अब्बाजान -
कभी-न-कभी आयेगे, अम्पा भी आयेगी ही। फिर इन लोगो से पृचछा,
कितने खिलौने लोगे | एक-एक को टोकरियों खिलौने दूँ और दिखा दूँ
कि दोस्तो के साथ इस तरह सलूक किया जाता है। यह नहीं कि एक पैसे
की रेउडियाँ ली तो चिढा-चिढ़ाकर खाने लगे । सब-के-सव खूब हुँसेगे
कि हामिद ने चिमटा लिया ह। हसेः मेरी वला से। उसने इूकानदार से
पूछा--यह॒चिमठा कितने का है ?
दूकानदार ने उसकी ओर देखा--और कोई आदमी साथ न देखकर
कहा--वह तुम्हारे काम का नहीं हैं জী।
'बिकाऊ हैँ कि नहीं?!
“विकाऊ क्यों नहीं है। और यहाँ क्यो लाये ই?
तो बत्ताते क्यों नही, के पैसे का है।'
छे पैसे लगेंगे।'
हामिद का दिल बेंठ गया।
'टीक-ठीक वताश्नो ?'
“टीक-ठीक पाच पैसे लगेगे, लेना हो लो, नही चलते बनो!
हामिद ने कलेजा मजसूत करके कटा--तीन वैसे लोगे ?
यह कहता हना वह श्रागे बढ गया कि दूकानदार की घुडकियाँ न सुने ।
लेकिन दुकानदार ने घुडकियों नहीं दी । बुलाकर चिमटा दे दिया ।
हामिद ने उसे इस तरह कन्धे पर रखा, मानो वन्दुक है और शान से अकडता
हुआ सगियो के पास श्राया! जरा सूनू, सव-के-सव क्या-क्या आलोचनाएंँ
करते हे 1
“-१४--
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