ऋत की धुरी | Rit Ki Dhuri
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
471
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घही तो साहित्यित्र अभिव्यक्ति होती है। अभिव्यक्ति एक कना है, एक वैय-
क्तिक अर्जनः है जो पाठक को मुग्ध करतो है, उमे विस्मिन प्रौर चमक्कृत करती
है। जिस कलाकृति में दर्शक या पाठक निमग्न हो जाये, जिसमे उसके मन की
ग्रवियाँ खुल जायें, जिसमे उसकी वृत्तिया सकलित हो जाये, वह सर्वदा प्रयास-
जन्य नही हो सकती । उसमे क्षमताओं का सहज एवं स्वाभाविक सवरण हो
जाता है। उसमे छेना, तूलिका या लेखनी मनोगति और रुचि का साथ देती
है। गोयनकाजी का 'हृदय' कितना ललित है ! इतना छोटा लेख और इतना
ललित !
गोयनकाजी वयोदृद्ध हैं, उनके अनुभव की गठरी बहुत भारी है। उममे
रत्न-मजूपा है। अवस्था या अनुभव की गुरुता साहित्य मे कभी-कभी खुले
विना नही रहती और जब वह उुलने लगती है तव उसमे उपदेश-रत्न विखरने
लगते हैं। उपदेश की कोटि पर पहुच कर साहित्य म्रतते मर्म को खोने लगता
है। सर्जना साहित्यकार की गरिमा है, किन्तु वर्जना उसकी दुर्बलता है।
यह ठीक है कि वर्जना के मूल मे कल्याण-कामना सनिहित रहनी है । पाठक
को साहित्य मे कल्याण की सोज का अवसर मिलना चाहिये। सच्चे गवेपक
फो गवेष्य भ्रवग्य मिलता है और मिलने पर उसे ग्रानन्द भी मिलता है, किन्तु
जो वस्तु चिना प्रयाय मिल जाती है उसका उपलाभ-सुख क्षीण हो जाता है ।
साहित्यकार जब उपदेश देने लगता है तब उसकी जादुगरी फा असर कम हो
जाता है । श्री गोयनक्राजी कभी-कभी लालित्य भे इवे दिलायी देते है । उनके
लेख मा का प्रारम्भ लालित्य मे ब्रोत-प्रोत है, किन्तु उसके श्रवमान मे उमे
वर्जनात्मक उपदेशो ने घेर लिया है श्रौर वही लालित्य किनारा कर गया ই)
इस समय मैं एक 'साहित्यकार गोयनकाजी' की वात कह रहा हैँ क्योकि
उनकी कुछ कृतियो मे मु उत्कृष्ट साहित्य मिला है । यदि गोयनकाजी के
शुद्ध साहित्यकार का साक्षात्कार करना हो तो उनका 'गोद' लेख द्रष्टव्य है।
त्त को घुरी मे श्रनेक विपय सचित हैं जो ६४ लेखो मे विफीर्ण है ।
इन ६४ लेखो के विपय शुद्ध श्रौर मिश्चित दो वर्गों मे विभाजित किये जा
सकते हैं जिनमे से १० शुद्ध हैं भ्ौर ७ मिश्रित है ।
इनके विपय समाज, राजनीति, सस्कृति, दर्शन, भक्ति, देश-भक्ति, भाव,
भनोविज्ञान, परिवार आदि से सबधित हैं। नमे से ६ लेख मिश्रित हैं और
पे है क्रम सख्या ११, १५, १६, १६, २१, २५, ३४, ३५ तथा ४६ के लेख ।
विघा की दृष्टि से भी इनमे विविधता है। गद्य कांव्य, कहानी, लेख, ललित
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