हमारे अधिकार और कर्तव्य | Hamare Adhikar Aur Kartavy

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Hamare Adhikar Aur Kartavy by कृष्णचन्द्र विद्यालंकार -Krishnachandra Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ ष কি 280 পাখি व्यक्ति ओर समांज प्रिथ अशोक, कल तुम्हारा तार पाकर मन वहत प्रसन्न हुआ कि तुम परीक्ता मे पासं होगयेह्ो शरीर घं मो अपनी श्रेणी में सबसे पहले नम्बर पर । आज तुम्हारा पत्र सिला। उससे यह जानकर ओर भी खुशी हुई कि तुमने अपने भावी जीवन का उद्देश्य लोक- सेवा निश्चित किया है। से तुम्हारे इस विचार से पूर्ण रूप से सहमत हैँ कि গ্লাস ঈ জলা ঈ प्रत्वक॑ विद्यार्थी का अपना जीवनोदश्य लीकसेवा ही वनाना चाहिए ! यहां सभी परिवार के लोग तुम्हें परीक्षा में पास होने पर बधाई देरहे हैं। संबंकी इच्छा है कि तुम दो चार दि के लिए यहाँ ज़रूर भा जाओ। मुझे आशा हे छि तुम्हें भी इसमें कोई ऐतराज्ञ न होगा। परीक्षा के वाद कुछ दिन आराम कर लेना ज़रूरी भी होता हे । आजकल को परीक्षा-पद्धति का अविप्कार किसने क्रिया है ओर उसको उर्द श्य क्या रहा होगा. यह तो हम नहीं जानते लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि उसका खयाल परीक्षा को आजकल का सा भयावबना ओर स्वास्थ्य को चोपट करने वाला तो न रहा होगा । यह खुशी की बात है कि आजकल भारतीय शिक्षा-विशधारदों का ध्यान भी इस आर गया हैं|




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