मानक हिन्दी कोश भाग ३ | Manak Hindi Kosh Bhaag 3

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Manak Hindi Kosh Bhaag 3  by रामचन्द्र वर्म्मा - Ramachandra Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्कृत शब्दो की व्युत्पत्ति के संकेत अत्या० स०--अत्यादि तत्पुरुष समास (प्रा० स० के अन्तगंत) प्रा० स०--प्रादि तत्पुरुष समास अन्य स०--अन्ययीमाव समास उप० स०~--उपपद समास उपमि० स०--उपमित कर्मधारय समास कर्म ० स०---कमंधारय समास च० त०--चतुर्थी तत्पुरष समास तृ० त०--तृतीया तत्युरुष समास द° स०--न्दर समास द्विगु° स०--द्विगु समास द्वि° त०--द्वितीया तत्पुरुप समास न° त०--ननूतत्पुरुष समास न° व०-नमूवहुव्रीहि समास निऽ-निपातनात्‌ सिद्धि प० त०--पञ्चमी तत्पुरूप समास पृपो ०--पृपोदरादित्वात्‌ सिद्धि সাণ व° स०--प्रादि बहुत्रीहि समास व° स०-वहुव्रीहि समास वा०-वाहुलकात्‌ मयू० स०-मय्‌ रव्यसकादित्वात्‌ समास गक ०--गकन्ध्वादित्वात्‌ पररूप प० त०--पप्ठी तत्पुरुष समास स० त०-सप्तमी तत्पुरुष समास ५८ यद चातु चिह्न हे । विशेष--पृषो ०, नि० और बा० ये तीनो पाणिनीय व्याकरण के सकेत है। इनके अर्थं हे, पृपोदर' आदि शब्दो की भाति, निपातन (विना किसी सूत्र-सिद्धान्त) से भौर वाहुरुक' (जहां जसी प्रवृत्ति देखी जाय वह उस प्रकार) से शब्दो की सिद्धि । जिन शब्दो की सिद्धि पाणिनीय सूत्रो से सम्भव नही होती उनकी सिद्धि के लिए उपर्युक्त विधियो का प्रयोग किया जाता है । इन विधियो से किसी शब्द को सिद्ध करनेके लिए वर्णो के आगम व्यत्यय, लोप आदि आवश्यकतानुसार किये जाते दै ।




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