प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन | Prabandha Kosh Ka Etihasik Vivechan
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ अणौ )
द्वितीय अध्याय में इतिहासकार राजशेखर की जीवनी व कृतित्व पर
प्रकाश डाला गया है। ग्रन्य के शीप॑क, संस्करणों एबं भाषानुवादों
का परिचय तृतीय अध्याय में दिया गया है। चतुथं ओर पञ्चम
अध्याय ऐतिहासिक तथ्यों के है । पष्ठ एवं सप्तम अध्यायों में राज-
शेखर के इतिहास-दर्शन कौ विवेचना की गयी है । अष्टम अध्यायं
प्रवन्धकोश और अन्य ग्रन्थों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता
है। अन्तिम अध्याय में उपसंहार के रूप में निष्कर्प दिया हुआ है ।
इस पुस्तक में यथेष्ट उद्धरण दिये गये है। इसको सुबोध बनाये
रखने के लिए कुछ तथ्यों की पुनरावृत्ति की गयी है जिसकी स्वीका-
रोक्ति यथास्थान पाद-टिप्पणियों में कर दी गयी है। विपय-विवेचन
को अधिक प्रामाणिक बनाने के लिए अन्य मौलिक ग्रन्थों से प्रभूत
सहायता ली गयी है। छेखक उन सभी ग्रन्थकारों का ऋणी है जिचकी
कृतियों से उसने सहायता छी है जिनका अविरल ज्ञापन पाद-टिप्प-
णियों में किया गया है। प्रारम्भ में संकेत-सुची ओर अन्त में पाँच
परिशिष्ट, अकारादि क्रमानुसार वर्गीकृत सन्दर्भ ग्रन्थ-सूची, राजशेखर
कालीन भारत का मानचित्र, अनुक्रमणिका तथा शुद्धिपत्र भी दिये
गए है।
प्रबन्धकोश पर इस प्रकार का कार्य प्रथम प्रयास है, किन्तु अन्तिम
नहीं क्योंकि ग्रन्थागत भौगोलिक तथ्यों एवं सांस्कृतिक पक्षों पर और
कार्य किये जा सकते हैं। परन्तु उन्हें इसलिये स्थगित कर देना पड़ा
कि पुस्तक में विस्तार सम्बन्धी दोप प्रविष्ट न हो सके ।
पुस्तक का मूल रूप शोध-अ्रवन्ध था, जो काशी हिन्दू बिश्व-
विद्यालय में पी-एच० डी० उपाधि हेतु स्वीकृत किया गया था। इस
सम्बन्ध में मैं अपनी निर्देशिका श्रीमती प्रो? कृष्णकान्ति गोपाल का
सर्वाधिक आभारी हूँ। अपने सह-निर्देशक एवं पूज्य गुरुवर प्रा°
लल्लनजी गोपाल के अधीन कार्य करने में में गौरव अनुभव करता
हैं जिनके अगाध पाण्डित्य एवं विद्यामय परथ-प्रद्शन के कारण इस
पुस्तक का दृष्टिकोण इतिहासशास्त्रीय हो सका मेरी जो कुछ भी
उपलब्धि है उसमें मेरी पूज्या माँ श्रीमती पुष्पा भारद्वाज तथा पूज्य
पिता डॉ० विश्वनाथ भारद्वाज के भी आशीर्वाद हैं ।
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