व्यापार - शिक्षा | Vyapar - Shiksha

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Vyapar - Shiksha by गिरिधर शर्मा - Giridhar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ सिका झालाबाहम दी मद्गशाही घढनी, अठभी, चौसन्नी, दुसक्षी आदि दी मोर पैसा भादि सौंयेके सिक्के थे। परन्तु अप करूवार श्या चत्ता रै शोर पसे भी अँगरेजी । भगरेखी सिर्कतोका स्थत प्रयार है। सिक्केकी आवश्यकता अइतसे मनुष्योंफे हृत्यमें यद प्रश्ष सहजर्मे द्वी उठ खड़ा होता है कि सिकेकी सायध्यकता फ्यां রী हुई १ प्यापार प्रारम्भ करते ही सिककी सायश्यफता आन पड़ती है। अव्ला-यवृछी ( विनिमय ) करना प्यापारती पहली सीढ़ी है । एक मनुप्यके पासकी वस्तुकी दूसरेको भावश्यकता होती है भीर दूसरेफे पासकी बसुकी तीसरेके। एक दूसरेकी भाषश्यकताकों पूर्ण करनेकी रीतिका दी माम भवुला-बद्ी ( विनिमय ) ह 1 कर्पना कीरिप्ट दि चोती.मानिफपुरेका भमरा चमार জিরা बनाता है भोर उसे श পেত ই। জী ৮৬০ মি টন यहाँ. श्वार खीर साषष्यकता हे 1 सूर्ते समर भोर भकार ১১০৭ और ज्यारसे सदछा-बदुली फर छेंगे। परन्तु यदि इन दोमोको उन घस्तुर्भोफी मावद्यकवा न हुई, तो अपमी इए यस्तु पानेके लिप इर उघर भटकना पड़ेगा अर एस कामम उनका थद्ुत समय स्यर्थ घछा ज्ञायगा। इन सय सइसनोॉको मिटानेके लिए. सिक्केफी भायश्यकता »ै। सिक्केके एव अम ष्ममार शर येच देगा और भपनी ए घस्तु जहाँ मिलेगी बरसे जरीद लेगा। सोना घौंदी पसन्द किये जानेका कारण ध्यापारमें घिनिमयकी बड़ी भाषष्यकता दोती है। विभिमय स्यापारम प्रथम सोपान है, पैसे द्वी सिफ्रेकी उत्पसिका भी कारण है। स्ययस्यापूषकः, दीघता सौर माखा्मफि साय पिनिमय- हो जनके सिय ओ साधन खो निकारा गया है, उसीका नाम सिक्का रै ঘি छिप जो चीडध ठया जाय, पह मियमित सौर: উইলস सुमीतिकी दोनी. याय ।




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