धर्ममूर्ति आनान्दकुमारी | Dharamamurti Aanand Kumari

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Dharamamurti Aanand Kumari by मागीलाल अमरचन्द लोढ़ा - Magilal Amarchand Lodha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ক च्छा (आ | জলা, .. - এ क - पृ ध गगन के विशास्त वक्षस्थक्ष पर असस्य तारागण वित इंति दें कौर ध्रस्त हो जाते दें, परन्तु उनसे प्रकृति में कोई खास परियसन नहीं दोठा। वहुर्तों फे सम्बन्ध में तो पता भी नहीं सकता कि दे उदित हुए सी या नहीं) घिद्व ने उनका न उदय होना जाना, न अस्त होना ही। परन्तु दम सथ से षिण चन्द्र फा लव फ्रासख्ती अघेरी निशा को चीर कर उदय दोता है तव क्या होता है ? नीतिकार सो उस समय 'ुप नहीं रहते, वे क ই ““एकश्रद्भस्तमी हन्ति न व तारागणोडपि ১ हु “पक ही चन्द्रमा खब दिव होता है तो सारा का सारा अन्धकार भष्ट फर देता है, परन्तु इजारों तारे मिक्षकर भी उसे नष्ट नहीं कर सकते |? सचमुच, चम्द्रमा फा प्रफाश ऐसा ही है। पूवं विरा फे कमनीय अ्क में से व घन्द्रदेथ' अपना उष्य प्रकाशमान मुख मण्डक छलेकर दाहर मोकते दें तो विश्व का दृश्य कुछ और का ओर हो जाठा है। जुगलुझों का प्रफाश फीका पड़ काता है। सारे भी सनन्‍द पढ़ जापे हैं। समुद्र का जक्ष, उस समय हिकोरे सोने कगठा है मानो वह हपे से उछक्ष रहा हो । जगक्षों भोर उपबर्नों के हृश्य का तो कद्दना ही धया ? वहाँ को वन्य ओऔषधियाँ कौर ख्रदी यूटियाँ इसे ही अपना जीवनाघार भौर जीवनदाता मानती




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