जीवन सुधार की कुन्जी | Jivan Sudhar Ki Kunji

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Jivan Sudhar Ki Kunji by मोहन ऋषि - Mohan Rishi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३ ) (१७) थोड़ा युद्धि परमवरेलिपे क्षगाद्येगा, इसमे फो दका भी आपको खर्च नहीं है । ( १८ ) घर और सन्‍्तानकी कितती चिन्वा है १ { १६ ) क्‍या उतना आपकी खुदको फी (२० ) इस पापारम्मका फल कौन सुगसेगा ? (२१) क्या छद्दफायके जीदको मानते हो ? ८२० ) रोज कितने जीवोंसे यैर বা ই? ( “६ ) उस धैरसे कसे मुक दोध्रोगे ? ( २४ ) एक रोटोफा फवल फैसे यनता ই? (२५) रोटीका एक फवल्त खा जानेमें कितने जीयोकी हिंसा द्लोती है ? (९६ ) यद्‌ लो नवीन मकान थनाया है, उसमें फोन रहेगा इसमें फितने रथ्यो, पानो, चपि, हया भौर च्रसजीयोंफा सारम्म हुआ ? ( मकान यनातेमें हुखारों झयये क्षणे, थे फिसने घोरपापसे मनुष्य समूहको चूसफर ह्ट्टे किये हैं ? यद गरीग्रोंके खून भौर दृष्टियोंसे घुनी हुई दयेत्ती है यह फिनना खुद देगी १ ) (८ २७ ) म पापका फल फीन सुगतेगा ? ( २८ ) फ्या ससारीफों पाप फरनेसे पाप नहीं लगता है ९ ( २६ ) क्या ससारीफो सप अपराध माफ हैं ९ ( ६० ) ्रापमें एवनी । फोमरवा कासे आई! (फि तप संयमपालनमें कायरता दिखलाते हो । भादीयिष्छपरेलिए पोर परि




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