बदलते परिवेश में पनपते अन्तर - पीढ़ी संघर्ष के विभिन्न आयामों का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन | Badalate Parivash Men Panapate Antar - Pidhi Sangharsh Ke Vpbhinn Aayamon Ka Ek Samajashastriy Adhyayan

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Badalate Parivash Men Panapate Antar - Pidhi Sangharsh Ke Vpbhinn Aayamon Ka Ek Samajashastriy Adhyayan by सुनीता त्रिपाठी - Sunita Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संघर्ष एक चेतन प्रक्रिया जिसमें संघर्षरत व्यक्तियों या समूहों को एक-दूसरे की गतिविधियों का ध्यान रहता है। वे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के साथ-साथ विरोधी को मार्ग से हटाने का प्रयत्न भी करते हैं। संघर्ष एक वैयक्तिक प्रक्रिया इसका तात्पर्य यह है कि संघर्ष में ध्यान लक्ष्य पर केच्धित न होकर प्रतिद्वान्द्रियों पर केद्धित हो जाता है । वहां सामान्य व्यक्तियों या समूहों के साथ संघर्ष नहीं किया जाता बल्कि व्यक्ति विशेष या समूह विशेष के साथ संघर्ष किया जाता है। परिणामस्वरूप प्रतिद्वन्द्दी एक दूसरे को भली-भांति जानते हैं और इसलिए इसे वैयक्तिक प्रक्रिया माना गया है। संघर्ष एक अनिरन्तर प्रक्रिया इसका अर्थ यही है कि संघर्ष सदैव नहीं चलता रहता बल्कि रूक-रूक कर चलता है । इसका कारण यह है कि संघर्ष के लिए शक्ति ओर अन्य साधन जुटाने पडते हँ जो किसी भी व्यक्ति या समूह के पासं असीमित मात्रा में पाये जाते है। परिणामस्वरूप कोई भी व्यक्ति या समूह सदैव संघर्षरत नहीं रह सकता। इतिहास बताता है कि मानव ने युद्ध में जितना समय बिताया, उससे कई गुना अधिक शान्ति में बिताया है। संघर्ष एक सार्वभौमिक प्रक्रिया इसका तात्पर्य यह है कि संघर्ष किसी न किसी रूप में प्रत्येक समाज और प्रत्येक काल में कम या अधिक मात्रा में अवश्य पाया जाता रहा है। जहां व्यक्तियों और समूहों के स्वार्थ एक दूसरे से टकराते हैं वहीं संघर्ष उत्पन्न हो जाता है। 1.2 अन्तर-पीढ़ी संघर्ष नयी या युवा पीढ़ी और पुरानी या वृद्ध पीढ़ी के बीच पाया जाने वाला भेद अन्तर-पीढ़ी संघर्ष के लिए काफी सीमा तक उत्तरदायी है। पुरानी और नवीन पीढ़ी के मूल्यों, विश्वासों, अभिवृत्तियों और व्यवहार- प्रतिमानों में काफी अन्तर पाया जाता है। इसका मूल कारण था पीढ़ियों में समय का अन्तर है। पुरानी पीढ़ी के लोगों का समाजीकरण और 9




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