वाल्मीकीय रामायण में बिम्ब - विधान | Valmikiy Ramayan Men Bimb - Vidhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
115 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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No Information available about सुरेश चन्द्र उपाध्याय - Suresh Chandra Upadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भयभीत हो उठते हैं । वाल्मीकि ऐसे ही पुरूष के चरित्र को वरीयता देते हैं और वह ই श्री दशरथ .
नन्दन श्रीराम आज क्या अस्तिक क्या नास्तिक सभी राम के चरित्र का लोहा मानने को बाध्य है ।
विद्वानों ने हमारी इसी मान्यता का समर्थन किया हैं ।
वाल्मीकि ने एक क्रान्ति और की वह टे उनका लोकिक संस्कृत के माध्यम से राम के
कथानक का काव्य वद्ध करना इसके पहले के लेखक परम्परा प्राप्त वैदिक संस्कृत भ रचना करते चले
आ रहे थे । जो जन सामान्य के लिए ग्राह्य नहीं रह गयी थी | सामान्य जनजीवन की भाषा वैदिक
भाषा से विकसित होकर वोल चाल की भाषा में परिणत हो चुकी थी । वाल्मीकि जी ने अपने रामायण
के सुन्दर काण्ड में हनुमान के मुख से स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख कराया है |
' वाच॑ चोदाहरिष्यामि मानुषीमिह संस्कृताम !'
इससे स्पष्ट हो जाता है कि वाल्मीकि के समय भँ मानुषी वाक् संस्कृत हीथी न कि वैदिक)
क्रान्किारी महा पुरूष इस मार्ग को अनुसरण करते देखे ग्ये है ।
उदाहरणार्थ - तथागत गौतम वृद्ध ने संस्कृत भाषा की उपेक्षा कर तत्कालीन पालि भाषा अ ५
जो लोक ग्राह्य थी उमे अपने उपदेश दिये आगे भी यह प्रृन्ति देखी गई है । जैसा कि विद्यापि की
मैथिली में या तुलसीदास जी की अवधी भाषा मे रचना । हमारी इस मान्यता का समर्थन राष्ट्र कवि
दिनकर ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ संस्कृति के चार अध्याय में किया है । “ निश्चय ही आज भारत में ही
नहीं विश्व के कौने- 2 में जो राम और राम का चरित्र व्याप्त है उसका श्रेय वाल्मीकि को ही है ।
यदि वे बंधी बँधायी लीक के अनुसार जैसा कि वैदिक परम्परा में इन्द्र वरूण , मरूत देवताओं की. वि
प्रशस्तयो समुपवर्णित है । उसी का अनुसरण करते तो आज राम कथा विश्व - व्यापी न बनती [इतना `
ही नहीं यदि राम का कथान-कही सही किन्तु उसको लौकिक संस्कृत | जन भाषा | में न लिखते तो .. -
भी राम कथा आज दिगिदगन्त व्यापिनी न होती । ` | | ५
सारांश यह है कि वाल्मीकि ने दोहरी करन्ति की एक ओर जहाँ उन्होने वर्ण्यं विषयके रूपमे
देवताओं को बहिष्कृत कर एक आदर्श पुरूष को स्वीकार किया तो दुसरी ओर उन्होने भाषिक क्रान्ति এ क्
{|| वा0र0 - सु0/ सर्ग ॐ0 / ।7 ~ न
५ 42 लौकिकसंस्कृत किसी वेयाकरण के मस्तिष्क का आविष्कार नहीं कही जा सकती । वैदिक पारय
९ संस्कृत का अस्तित्व रहा होग । वाल्मीकि ने सवे पहले लौकिक संस्कृत में काव्य रचना
की अतएव के आदिकवि ओर उनका काव्य अदि कव्य माना गया । यह बहुत कुछव्सादही
~ ` उदाहरण है जैसा कि विद्यापति का संस्कृत और प्राकृत को छोड़कर मैथिल भँ लिखना तथा अमीर खुशरो `
का खड़ी बोली में काव्य आरम्भ करना |” | संस्कृति के चार अध्याय पृष्ठ- दिनकर 67 | के
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