भारतीय शिक्षा का संक्षिप्त इतिहास | Bharatiy Shiksha Ka Sankshipt Itihas

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Bharatiy Shiksha Ka Sankshipt Itihas by बंशीधरसिंह - Bansheedharsingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व मे हम तप রি वा ला 12005 व दर म সস সু ০ = स कः সিউল अध्याय ३ स (~ वेदिककालीन शिक्षा ग्रध्याय-संक्षेप :--१. वैदिककाल के उपकाल। २. उपकालो कौ सामान्य प्रवत्ति। ३. काल का नाम “वेदिककाल” ही । ४. शिक्षा के उह्ं श्यों के आधार | ५. वैदिककाल की दक्ला-साहित्य, व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन, धामिक दशा, उघोग-धन्धे, राज्यतस्बर । ६. वैदिककाल की शिक्षासम्बन्धी श्रावश्यकताएँ। ७. वैदिककालीन शिक्षा के उद्देदय । ०. शिक्षा-प्रणाली-उपनयन, व्रतोपदेश, भिक्षावृत्ति, शिक्षा की श्रवधि, दीक्षान्त, त्रतग्रहण । £. श्रनध्याय । १०. शिक्षा के स्थल एवं माध्यम । ११. पाद्यक्रम । १२. श्रध्यापन-विधि । १३. स्त्री शिक्षा । १४. गृरु-शिष्य-सम्बन्ध । १५. समालोचना, विशेषताएँ--श्रुटियाँ ।. १६. उपसंहार । वेदिककाल के उपकाल--पिछले अध्याय में कहा जा चुका हैँ कि वेदिक- काल का विस्तार २५०० ई० पूर्व से ५०० ई० দুল বন্ধ है। उस सम्पूण काल को वैदिक-साहित्य की विभिन्न रचनाओं के रचनाक्रम के आधार पर _ निम्नलिखित उपकालों मं विभक्त किया जा सकता ह -- १--ऋग्वेदकाल । २--उत्तरवेदिककाल । ३--त्राह्यणकाट | ४--उपनिषत्‌कार । ५--सूत्रकाल । ६--स्मतिकाल। उपकालों की सामान्य प्रवृत्ति-इस सम्पूणं कार को वंदिककार कहने तथा इन समस्त उपकारो को वैदिककाल के अन्तगेत करने का एक विशिष्ट कारणः ध है। वह कारण यह है कि इस काल में वेदकी प्रधानता रही) ब्राह्मण से लेकर स्मृतियों तक सभी साहित्य वेद को परम प्रमाण मानकर लिखा गया। इन सभी ग्रन्थो में वेदप्रतिपादित ज्ञानसू्वो, कर्म-काण्डों तथा व्यवहार-मर्यादाओं की ही व्याख्या एवं विवेचना हुई । वेद की प्रधानता के कारण ही इस कार को ““वेदिक- काल कहा जाता हं ।




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