भारतवर्ष तथा उत्तरप्रदेश में प्रजातान्त्रिक उच्चतर माध्यमिक शिक्षा की ऐतिहासिक भूमिका | Bharat Varsh Tatha Uttar Predesh Me Praja Tantrik Uchchatar Madhymik Shiksha Ki Etihasik Bhoomika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ 9 ` ~ मान्यताओं अर राग-दरेप आदि का मूल उद्‌गम वातावस्म के प्रभावों में पाया जा- ५ सकता हे 1१ विभिन्न देशों मे प्रौढ-रिक्ना की राष्ट्रीय प्रणालियों और यूनेस्को (१८६८०) की आधार-पूत शिक्षा के सम्पूणं काय॑क्रम ` आदि आंशिक या पूर्णरूप ' पे प्रौढ़जनों में प्रजातांत्रिक भाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से ही चलाये जा रहे हैं । चकि शिक्षा निरंतर चालू रहनेवाली जीवन-ब्यायी प्रक्रिया है इसलिए संभवतः शैक्षिक-क्रम के सभी स्तरों पर प्रजातांत्रिक शिक्षा समानंरूप से आवश्यक है । तथापि यह निविवाद रूप से मान सकते हैं कि किशोर जीवन में इस प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता सबसे अधिक है क्योकि यही आंतरिक संघर्ष, हलचल और भावात्मक अस्थिरता की आयु होती है, इसी समय मनुष्य के व्यवहारों में द परिवर्तन होता है और इसी समय यह कुछ सरलता से पुराने विचारों और दृष्टि- हि कोणों का त्याग करके नये विचार ग्रहण करता है । अतः व्यक्तित्व - विकास के 8 इस महत्वपूणं ` दौरान मे किशोर जनों को प्रजातात्रिक जीवन की अधिक से अधिक श्ना दी जानी चाहिए । निम्नलिखित उद्धरण में यही विचार बड़ी स्पष्टता से व्यक्त किया गया है । “जब हम यह विचार करते हैं कि प्रौढ-शिक्षा प्रजातांत्रिक आदर्शों की प्राप्ति कराने म कितनी उपयोगी है, यदि उसे सावेभौमिक बना दिया जाय, तो तुरन्त ही हमारा ध्यान माध्यमिक शिक्षा की त्रुटियों की ओर जाता है और खास तौर से इस ओर कि हमारे बहुत कम नवयुवक स्थायी अभिरुचियों द्वारा प्रेरित हो पाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा संस्थाओं की स्थापना से इन दोषों को दुर करने मे सहायता मिलेगी परन्तु माध्यमिक स्कूलों में किशोरों की शिक्षा के उत्तरदायित्वों और उसके लिए उपयुक्त अवसरों का अतिचित्रण करना असंभव है।* एक और महत्वपूर्ण तके है, जिसके कारण उच्च माध्यमिक स्कूलों को . प्रजातांत्रिक शिक्षा देने का काम सौंपा जाना चाहिए । प्राथमिक स्कूल न केवल इस कायं के लिए अनुपयुक्त है, वरन्‌ इस स्तर पर विद्यार्थियों की बुद्धि इतनी .. परिपक्व नहीं होती कि वे उन प्रजातांत्रिक आदर्शों और मान्यताओं को भली भाँति समझ सके। इसके विपरीति माध्ममिक स्तर इस कार्य के लिए सबसे পিস कान १ यक्तित्व परपर के प्रभाव के संबंध में व्याख्या के लिये देखिए ० , ইউ 16009185515 एष 0. 8. ला .. - पतिल्प्राफ त०।४ अत (काव, पविलत श्ना], 1944. আত বৃ ২80৩৪০০2৭0৩ 1050500থ0 वल्य, छा = | ¦ ^. ©. प्रष्टु, 17908009005, (0660. 850০১ [,0700005 বত. ध छठ, 7910০-1951 বা




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