ईशावास्योपनिषद पर प्रवचन | Eeshawasyopanishad Par Pravachan

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Eeshawasyopanishad Par Pravachan by स्वामी चिन्मयानन्द - Swami Chinmayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) पूर्वक हिन्दुओं की धामिक पुस्तकों,उपनिषदों का सम्पूर्ण अर्थ और (अभि- प्राय) समभझेगे । इन २१ दिनों के में हम ईशावाष्योपतिषद का एक- एक मन्त्र लेकर उसका विस्तारपूवेक प्रध्ययन करेपे । खोज प्रौर समभ के स्पष्ट विचार से हम निर्भीकता से इस पुस्तक का श्रनुसन्धान करेंगे । आधुनिक काल में धर्म और श्रुतियों के प्रति बहुत से प्रदन उठते हैं। जीवन की व्यस्तता के कार्ण हें इना समय ही नहीं होता, न इतना सब्र ही कर पाते हैं कि हम यह श्राभास कर सकें कि इन श्रृतियों के आचार्यों, चाहे वे प्रवतार हों, या स्वयं ईश या केवल नश्वर दाशेंनिक हों, अपनी सहायता से हमारा जीवन सुखमय बना सकते हैं । वलब के बरामदे, जनता की भ्राम समाग्रो, विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों, आदि स्थानों में जहाँ पर अ्रध्ययन होता है या केवल वादा- विवाद, हम श्राजकजल एक समृदाय को निकलते हुए, चलते हुए प्रश्न सुनते है, क्या उपनिषदों को श्रक्षरशः समाप्त कर दिया जाए? व्या श्रुतियों को जीवन दान दिया जाए ? क्या श्रुतिर्यां हमारी कोई सेवा | कर सकती हैं ? हम इन सब प्रश्नों पर प्रकाश उालने का प्रयत्न करेगे, इनकी खोज के विचारों से यह देखेंगे कि यह ईशोपनिषद धामिक पुस्तक उनकी कहाँ तक पूर्ति कर सकती है ॥ प्रापसे मेरी यह प्रार्थना है कि यज्ञ के इन दिनों में मूभे कोई विशेष प्राणी न समभ बैठें जिसमें कोई विशेष शक्ति है या कोई विशेष दिव्यता है । मैं कोई गुरु नहीं हैं और न श्राप लोग शिष्य हुँ। हम दोनों तो सहपाठी हैं और इस ज्ञान के कमरे में दोनों साथ-साथ सह भावना से, ऋषियों के महान ज्ञान की खोज करने के लिए उतरे हैं। हम तो सच्ची साध, भावना और सहयोग से साथ-साथ एक यात्रा कर रहे हैं। इस पुस्तक में प्रवेश करने के पहले यह श्रावश्यक है कि हम इन महान विषयों के कुछ भ्रायिकारिकं नियम सम जाएं ।




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