गोम्मटसार | Gommatasar

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Gommatasar by खूबचंद्र जैन - Khoobchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रायचन्द्रजेनशाखमालादारा प्रकाशित ग्रन्थोंकी सूची । ॥ ০০৫১০১৩১১১১ १ पुरुषार्थसिद्युपाय भाषादीका यह श्रीअम्तचन्दखामी विरचित अलिंद्ध शात्र हे इसमें आचारसंबन्धी बड़ २ गृढ़ रहस्य ह विशेष कर हिंसाका खरूप बहुत खूबीकेसाथ दरसाया गया हैं, यह एक वार छप्कर विकगयाथा इसकारण फिरसे संशोधन कराके दूसरीवार छपाया गथा इ । न्या. १२ पश्चास्तिकाय संस्छ. भा. री. यद श्रीकुन्दकुन्दाचारयक्रत मूल और श्रीअमृदचन्द्रसूरीक्षत संस्छृतदीकासदहित पट्टे छपा था । अवकी वार इसकी दूसरी आवृत्तिमें एक संस्क्ृतटीका तातयइत्ति नामकी जो कि श्रीजयसेनाचायने बनाई है अर्थद्री सरलछताकेलिये छगादी गई है तथा पहली संस्कृतटी काके सूक्ष्म अक्षरोंकी मोटा करादिया है और गाथासूची व विषयसूची भी देखनेकी सुगमताके ल्यि लगादी हैं | इसमें जीव, अजीव, धर्म, अधर्म ओर आकाश इन पांच द्र॒व्योंका तो उत्तम रीतिसे वर्णन है. तथा काल्द्वव्यका भी संक्षपसे वर्णन किया गया है । इसकी भाषा टीका खर्गीय पांडे हेमराजजीकी' भाषा- टीकाके अनुसार नवीन सरलर भाषादीकामें परिवर्तन कीगई है। इसपर भी न्‍यों. २ | ज्ञानाणव भा, टी. इसके करता श्रीशुभचन्द्रखामीने ध्यानका वर्णन बहुत ही उत्तमतासे' किया 6 । प्रकरणबश व्रह्मचयत्रतका वर्णन भी बहत दिखलाया है यह एकवार छपकर विकगया था अब द्विती. यवार संशोधन कराके छपाया गया है । न्‍यों, ४ ह- ४ सप्तभड्ञीवरंगिणी भा. टी. यह न्यायका अपूर्व अन्थ है इसमें ग्रंथकर्ता श्रीविभलदासजीने स्था« स्ति, स्यान्नास्ि आदि सप्तभङ्गी नयका विवेचन नभ्यन्यायकी रीतिसे किया है। स्थाद्गादमत क्या है यंह जाननेकेलिये यह अंध अवश्य पढ़ना चाहियें। इसकी पहली आदृत्तिमें की एकभी अति नहीं रही अब दूसरी आम्रत्ति शीघ्र छपकर अकाशित होगी । न्‍्यों. १ रु द ५ च्ृहद्रव्यसंभ्रह संस्कृत भा. ठी. श्रीनेभिचन्द्रखामीकरत मूल जर श्रीब्रह्मदेवजीकृत संस्छृत्टीका तथा उसपर उत्तम बनाई गई भाषाटीका सहित हैं इसमें छह दृब्योका खरूप अतिस्पशथ्रीतिसे' दिखाया गया हूं । न्‍यों. २ रु : ६ द्रन्या्योगतकणा इस प्रथमे शाच्रकार श्रीमद्धोजसागरजीने खगमतासे मम्दुद्धिजीवोको द्र्य शान होनेकेलिये “अथ, “गुणपययवद्वव्यम” इस महाशात्र तत्त्वार्थसृत्रके अनुकूल द्रब्य--ग्रुण तथा अन्य पदार्थोका भी विशेष वर्णन किया है और प्रसंगवश खादसि आदि सप्तभन्नोंका और दिगंबराचा- यवय श्रीदेवसेनखामीविरचित नयचक्रकें आधारसे नय, उपनय तथा मूलनयोंका सी विस्तारसे वर्णन किया हूं । न्‍यों, २ रु द ७ समाप्यतत्त्वाथोघिगमसूत्र इसका दूसरा नाम तत्त्वाथाघिगम मोक्षशात्र भी है जैनियोंका यह प्रममान्य और सुख्य अन्य है इसमें जनघर्मके संपूर्णसिद्धान्त आचार्यवर्य श्रीउमास्वाति ( मी ) जीने बडे छाधवसे संग्रह किये है । ऐसा कोई भी जैनसिद्धान्त नहीं है जो इसके सूत्रोंमें गर्ित न हो । सिद्धा- न्तसागरकरो एक अयन्त छटेसे तक्वार्थरूपी घटम भरदेना यह कायं अनुपमसामभ्य॑वाटे इसके स्वयि- ताका ही था। तत्त्वार्थके छोटे २ सूत्रेके अर्थगांभीयकों देखकर विद्रानोको विसित होना पडता दै । न्‍्थों. २ र. ८ स्थाद्रादमशञ्नरी संस्कृत भा. टी. इसमें छहों मतोंका विवेचनकरके टीका कर्ता बिद्द्॒य श्रीम- हिषेणसूरीजीने स्याद्वादको पूर्णहूपसे सिद्ध किया है । न्‍यों- ४ रु. ` ९ गोस्मटसार ( कर्मकाण्ड ) संस्कृतछाया और संक्षिप्त भाषादीका सहित। यह महान्‌ ग्रन्थ ध्रीनेमिचद्धाचार्यसिद्धान्तवक्रवर्तीका बचाया हुआ है, इसमें जेनतत्त्वोंका स्वरूप कहते हुए जीव तथा कर्मका स्वरूप इतना विस्ताररो हैं कि बचनद्वारा प्रशंसा नहीं होसकती देखनेसेही मारूम होसकता ই




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