यज्ञतत्त्व | Yagyatattv
श्रेणी : साहित्य / Literature

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यज्ञतत्त
(१)
यज्ञ--भगवत् साधना
हिन्दु शास्त्र में भगवान एक बड़ा ही रहस्यपूण शब्द ই।
साधारणतः भगवान की दो अवस्थाएँ बतायी गयी है- निर्गुण
{10118 01{€5160 ) छर सगुण (11801165659) । লি
वाक्य-मन के अगोचर हैं ; इसलिये चिन्ता-धारणा एवं साधन-भजन
के भी अतीत हैं। किन्तु सगुण का साधन करते-करते निर्गुण
भी किसी मात्रा में धारणा के विषयीभूत हो जाते हैं। जीव-जगत
# सगुण भगवान की सजीब सूतिं हं । वे विश्वरूप है- विश्व के
अन्तरात्मा है । उनका एक ओर नास परमात्मा ह ; आत्मा की
परम--व्यापकता में परम एवं गम्भीरता में प्रम--सर्व अष्ठ अवस्था।
ज्ीब-जगत उन्हीं की लीला-स्व्रीकृत विग्नह है । वे विश्व को रचकर,
बिश्वरूप में परिणत अथवा विवतित हकर, अपने-आपको छिपाकर
लीलारस विस्तार कर रहे हैं । इस छिपे हुए चोर को दं द निकालने
का एकमा उपाय हे उनके रूट जीवों कौ सेवा करना, प्रक्रत
| 'कल्याण करना । आत्मा को; परमात्मा को देखना-सममःना कठिन
ह; देह दार वे प्रकाशित हैं ; इसलिए देह को अवलम्ब करके
उनकी धारणा करनी होगी । अतः जीव की सेवा हाय शिव की
सेवा का अधिकार लाभ करना ही श्रेष्ठ साधना है। हिन्दुओं के
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