द्वापर का देवता अरिष्टनेमि | Dvapar Ka Devata Arishtanemi

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Dvapar Ka Devata Arishtanemi  by मिश्रीलाल जैन - Mishrilal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मार्ग अपनाथा। तंप और त्यागके कठिन सार्गपर चलने वाला इस: प्रकारका जोड़ा বিহ भरमें भी नहों मिलेगा । कठोर तपके द्वारा कमंबन्धतकों तोड़कर भगवान्‌ तेमिनाथने कंवत्य प्राप्त किया बौर सौराष्ट्र, लाट, पांबाल, शुरसेन, कुर्जागर, कुशाग्र, मगध, भङ्ग, भञ्ज, कलिङ्ग भादि देशोमे विहार करके षर्मोपदेश दिया । अरिष्टनेमिके समवसरण (धमं-समा) मेँ बरदत्त आदि ११ गणधर, ४०० पूर्ववारी, ११८०० उपाध्याय, १५०० अवधिज्ञानी, १५०० केवलज्ञानी, ९०० विपुलमतिमनः- पर्ययज्ञानी, ८०० वादी भौर ११०० विक्रियारद्धिधारी मुनि थे। राजीमति भादि ४०००० अजिकाएं थीं । १६९५००० श्रावक और ३२६००० श्र|विकाएँ थीं । विहार करते हुए जब तीर्थंकर अरिणष्टनेभि पुनः द्वारका पघारे ओर रैवतक पवंतपर विराजमान हो गये तो वसुदेव, बलदेद और, श्रीकृष्ण परिजनों और पुरजनोंके साथ उनके दर्शनोंके लिए उनके पास पते, धर्मकथा सुननेके बाद बलदेवने भगवानूसे पूछा-- भगवन्‌ ! यह सुन्दर नगरी द्वारिका क्या हमेशा इसी प्रकार अवस्थित रहेगी ? कृष्णकी मृत्यु किस निभित्तसे होगी ? मेरा चित्त कृष्णके स्ेहपाशमे बंधा हुआ है, क्या ऐसी श्थितिमें मैं कभी संयम ग्रहण कर सकूंगा ? प्रभो ! मेरी जिज्ञासा शान्‍्त करें|! त्रिकालज्ञ भगवान्‌ अरिष्टनेमिने बलरामके प्रइनोंका उत्तर देते हुए कहां--बल- रास ! यह द्वारकापुरी आजसे १२ वर्ष बाद मद्य पान करनेवाले यादवोकों उदृण्डताके कारण द्वीपायन मुनिकों क्रोध आनेपर उनके निमित्तसे भस्म हो जायगी। श्रीकृष्णको मृत्यु कौशाम्बीके वनमें जरत्कुमारके बाणसे होगी। उसी समय श्रीक्षृष्णकी मृत्युका निमित्त पाकर तुम्हें वैराग्य उत्पन्न हो जायेगा। तुम घोर तप करके ब्रह्म स्वम उत्पन्न होगे ।' भविष्यवाणी सही निकली : जिस समय तीर्थंकर अरिष्टनेमिने अपनी दिग्यध्वनिमे उक्त भविष्यवाणी की उस समय बलरामके मामा हैपायनकुमार भी वहाँ मौजूद थे। उन्होंने जब यह सुना तो संसारसे विरक्त होकर मुनि हो गये ओौर अप्रिय प्रसंगको टालनेके लिए अन्यत्र चक गये । जरत्कुमार भौ अज्ञात स्थानको चकते गये । जरल्कुमार श्रीकृष्णके लघु भ्राता ही थे। बलराम और श्रीकृष्णने सारे नगरमें मद्य-निषेधका आदेश करा दिया और मद्यको बनोंमे अज्ञात स्थानोंपर फिकवा दिया। तीर्थंकर नेमिताथ वहाँसे विहार कर गये। भवितभ्य टलता नहीं । यादव कुमार बनक्रीड़ाके लिए एक दिन वनमें गये हुए थे। वहाँ प्यास लगनेपर गड़्ढोंमें भरी शराबको पानी समझकर पी लिया । उसके पीते हो वे सबके सब उन्म्रत्त हो गये और परस्परमें लड़ते हुए वे वहाँ पहुँच गये जहाँ द्वीपायन- १४ : द्वापरकां देवता




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