निरुक्तसार निदर्शन | Niruktsaar Nidarshan

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निरत शौर याल $
या प स्वाधिकार पा जिर प्रकार पाणिनि र पूर्य वैयाकरण
आपिश्ञति का सर्वाधिक प्रभाव था, उसी प्रकार वास्क पर शाकपृणि का प्रभाव
দা হাক का लिख्लतशास्त्र भी पास्कीयनिसलत के प्रायः समान ही था,
वर्तु छसमें भेद सी दर्यध्त दा । जिस प्रकार पाणिनि व्याकर के प्रादुाव
से धन्य प्राचीत व्याकरण लुप्त हो লই, তম प्रकार यास्क के उदय से अन्य
सौ पाचन निरत लुप्त हो गये। इस सम्बन्ध में पं० भयवदृत्त ते जो कुछ
लिखा है, उसका कुछ संश यहाँ उद्धृत करते हैं ४--' म्
समाम्ना तिषण्टू का क्रम भी लगभग यास्कोय निषष्दु सदृश ही या
নাম 16 যা ঘতির
নাম 35 „५५
(3) सत् । एनत । विवस्वति !
(4) শিব । एति यजमान नाम == 316, 18 के खाब वाहक में
(5) पम । इति मनाम यजमान नहीं है।
पारक से झ्लाकपूणि के मत निस्क्त में सर्वाधिक उद्धृत किये हैं वा
'यमेवास्जिवेस्यातरइति श्लाक्यूणि', गिन इति धाशपूमि” इदि यः
उल्लसित है ।
यास्क का बत-यात्क ए मोत नान वा, जि कार बिष, पराव,
कौशिक, काश्यप इत्यादि । निल्कतत़र यारक का वास्तविक नाम भो भवाव
ছাফা योजे' (भ्रष्टाध्यायी 24163) | घर: यास्क एक শীল লাম
था, इस गोद या वंझ में यास्क सास के নক भुतव मिष पूर हे ।
एक यास्क जातूकप्ये के गुर और म्स मार क पतामह गु वे, इस तपय
का उल्लेख पतप ब्राह्मण (14/4/63) में हुआ है--
वाक्य जातुक्पाज्नातूरूधवों पास्कात्'
इल पारश को पयः दात् पाराण्य कष्णदपापन व्यास शमसते हैं
पर जातृकर्ष्य व्यास के गुद ये, ऐसा इतिहासपुराणों थे भी सिद्ध है, परन्तु
যে क्लः र नगत [० 2627)
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