सत्यार्थ प्रकाश | Satyarth Prakash

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Satyarth Prakash by अखिलेश मुनिजी महाराज - Akhilesh Muniji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ $ ) न्तोंका पूर्ण अनुगमन करते हुवे लिखा गया है, आगे के खब আন্ত अपने बर्त्तमान हड़ मन्तवब्यके अज्चुखांरद्दी होंगे ओर पुराने श्रन्थों का यधथाचलर शोधिन किया जायगा । इस खत्यार्थप्रकाशाल्लचन में मैने कई जगद रत्यार्थे प्रकाशकों 'खराज्य' का पतिपादक लिखा है स्वास्य शब्द्से मेरा अभिप्राय राजवचिद्रोहसे है । कुछ वर्षों पहके राजनीतिक उनभिक्ञ दिमाग फिरे जे कुछ लोग विदेशी शासनसे चिढ़ते थ्रे, थे चलपूर्चक चिदरेशों शासन हटाकर अपना राज्य कायम करने पके ही स्वराज्य समकतेथे और उसहीकी फामना करतेथे झेसे ही सछोगोमें स्था० द० भी प्क थे | इख॒ही कारण जने ने सत्यार्थग्रका शापं छे्मोच्छो चिदेशियें से चिदा दहै जख न्क इस्त आलेचनके देखनेले रूफुट दवागा । और प्रिटिश शासनव्छे भीतर रहते हुए औला ख्वराज्य हमारे चत्तमान नेता चादहते,हैं, जिसके स्लिये भारतवास्ली मात्रको आकाडत्ता हे, आर जा क्रमशः न्‍्यायशील यह्नरन॑मेर्टफी कृपासे हमें পা हने लगा है, डस्त्र स्वराज्यचादका गन्धभो सत्यार्थप्रकाशमें नहीं हे ।,,न इसे स्वामी दयानन्द जानते थे । मेरे शच्द्‌ मात्रपर किसी को धका न छे। इस लिए यद्द रूपप्रीकणण लिख दिया है । इस्त आलेचन में पक दे। जगद ब्राह्मण श्रन्थोंकों ऋषिप्रणीत লাগান लिखा गया है । उसका अभिप्राय ऋषियोंद्धारा ब्राह्मण न्यो का धकर दाना है।मे मन्न ब्रह्मण देनोंकों चेद , मानता ह-ञैला कि पृष्ठ नर मे स्पष्ट छिखसी दिया है । , या है कोई वेदको अनादि, च्छोई ईशचरप्रणेत और कोई आक्लीन आच्ार्योका दी चेद्कर्ताके सम्बधमें मतसेद्‌ चलकाआ- চু अटषभिप्रशीत मानते आए हैं | अल्तु इस पर यहां सुझे चिबाद्‌ नष्टो कस्ना दै । यद्धि मन्ज ऋषिप्रणीत हैं লী ब्राह्मणसी चैसेटी म्द




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