हिंदी आलोचनाये | Hindi Alochnaye

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Hindi Alochnaye by सोमनाथ गुप्त - Somnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्श्य [ पदुमलाल पन्नालाल बस्ती है, तय उमके सादित्य का दास दोने ह्गव।, दि । जाने पढ़ता है, पार्थिव वैमव में कविंतान्कला का फम संयंघ दे। जब॒ तक देश उन्नतिशीक है, तप तक उसमें सादिस्य फी उन्नति दतो रहती दै । जय घद वनठि- शील होता है, तब सादित्य की गति बदल जानो है । परन्तु उसका देप पम नहीं होता । वैभव की उन्नति से 'जय फिसी जाति में स्थिरता जाती है, तभी सादित्य थी श्वबनति दोनो दै। यद नियम ऐरथ्बी की सभी सानियों फे संबंध में, सभी कालों में, सत्य हैं । अप प्रश्न यदद दै कि ऐसा दोना क्यों दै ? नीचे हम इसी प्रश्न का उत्तर देने की 'ेप्टा करेंगे । कितने दो विद्वानों का विश्यास दे कि जब मतुष्य प्रकृति के सौंदर्य विकास से मुग्ध दा ज्ञाता है, तव घह श्रपने सनो मा्थों को रूपक्त करने की चेप्टा करता दि । इसी मॉदर्य लिप्सा से सोदिस्य की सुष्टि दोती दै वीर कला का विकास । परंतु इस सिद्धांत के विरुद्ध एक थात कड़ी जा सकती है । सच मनुष्य सम्यता 'घीर ऐशवर्य की घरम सीमा पर पहुँघ जाता है, तब्र तो उसकी सौंदर्यानुमूति और मौंदर्योपमोग की शक्ति था दास नदीं दाता, दलटे उसकी यृद्धि दो होती दे । तब, ऐसो अवस्था में, सादिस्य झांर कला यी खूब उन्नति दोनी चादिए । परंतु ऋन् विपरीत होता है । जाति के ऐश्वयें से सादित्य मलिन दो जाता है । 'और कला शीदत । जर्मनी के ज्ञोव-्तरवरिशारदों का कथन दै कि जो जादि ।. सभ्यता की निम्नतम श्रेणी में रदती है, बद प्राकृतिक सौंदर्य से मुग्प 1. होने पर विस्मय से अभिभूत दोठी है । उस विस्मय से उसेके हृदय में ,. आतक का भाव उत्पन्न दोता दे झीर श्रातंक की प्रेरणा से उपासना 'ीर घ्मे की सष्टि होतो दै । यद विस्मय क्यों दाना दे ? शास्त्रों के 1. अनुसार द्ैतानुभूति हो विर्मय के दद्रक का कारण हे । मैं हूँ, और सुमसे मिन्न विश्व दै। में इस विश्व के दिकास और विलांस को देखकर सुग्ध दोता हूँ, '्औौर प्रतिक्षण रसको नवीनता का अजुभव कर विस्मय 7. से झभिमूत होता हूँ 1 सवोमता की श्रजुभूति से विस्मय प्रकट दोता है। + जीव-तरव-विशारद बिरचाद ( छेप्टाश४ 9 ने. सलुष्य के




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