सामाजिक कुरीतियां और उनके दूर करने के उपाय | Samagik Kuritiyan Aur Unke Dur Karne Ke Upay

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Samagik Kuritiyan Aur Unke Dur Karne Ke Upay by माधवप्रसाद मिश्र - Madhavprasad Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about माधवप्रसाद मिश्र - Madhavprasad Mishra

Add Infomation AboutMadhavprasad Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
গল विभाग १७ का भार अपने ऊपर ले ले । परन्तु ख्याल कीजिए एक आदमी अपनी वाल्या- वस्था से लेकर तीस वर्ष की उम्र तक दूसरों की ही कमाई पर गुरुर उडाता रहा, और यह वादे करता रहा कि में किसी समय कोई वहुत ही उपयोगी काम कर दिखाऊंगा, जिसके लिए उससे किसी ने कभी कहा भी नहीं है--- खैर, वह अपना विद्याध्ययन भी समाप्त कर चुकता है। पर इसके वाद भी वह अपनी वाकी जिन्दगी उसी प्रकार विता रहा है--हां, और वरावर নাই करता चला जाता हैं कि में शीघ्र ही कोई अच्छा काम करूंगा। भला बताइए, यह भी कोई शम-विभाग है ? यह तो वस्तुतः वलवानों द्वारा निर्दलों के परिश्रम का अनुचित उपयोग करना हं, जिसे दैवे-वष्दियों ने भाग्यः, : दार्शनिकों ने जीवन की अनिवार्य अवस्था' तथा आधुनिक अर्थ-शास्त्रियों ने श्रम-विभाग' की उपाधि दे रखी है। श्रम-विभाग मानव-समाज में सदैव से रहा है, और में साहस के साथ कह सकता हूं, सदैव रहेगा भी । परन्तु हमारे सामने प्रन यह नहीं है कि यह हमेशा से रहा है और भविष्य में भी हमेशा रहेगा । वल्कि वास्तविक प्रश्न यह हैं कि इस श्रम-विभाग को उचित श्रम-विभाग का रूप किस प्रकार दिया जा सकता है। श्रम-विभाग तो है। 'दिखिये न, कुछ लोग मानसिक श्रम कर रहे हैं, कुछ आध्यात्मिक परिश्रम में लगे हुए हें और कुछ मनुष्य शारीरिक परिश्रम करने में व्यस्त हैं।” मनृष्य किस विश्वास के साथ कहते हैं ! उन्हें यह विचार सुखद मालूम होता है इसलिए उन्हें इस व्यवस्था में अपनी सेवाओं का उचित परिवर्तेन दिखाई देता है, जो वास्तव में प्राचीन समय से होता आया भीषण अत्याचार हैं। “तू अथवा तुम--क्ष्योंकि प्रायः वहु-संस्यक लोग ही एक की सेवा किया करते हे--- तुम मुझे! भोजन दो, वस्त्र दो और मेरे लिए वह सब मोटा काम करो, जो करने के लिए म॑ तुमसे कहूं और जिसके करने का तुम्हें अपने बचपन से अभ्यास रहा है, और इसके बदले में तुम्हारे लिए दिमागी काम करूंगा, जिसके करने का पहले से मुझे अम्यास रहा है। तुम मुझे शारीरिक भोजन दो और में इसके बदले तुम्हें आध्यात्मिक भोजन दूंगा। यह्‌ कथन विलकुक ही उचित जान पड़ता है और वास्तव में यह उचित २




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now