जयश्री | Jayashri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
123
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३
बनावट दोनों ने अपनी दोस्ती के सद्दारे एक तीसरी चीज़ पेदा
कर दी है । मौसमी फसलों की लद्दलहाती हरियाली के बीच
नगरकोट की धमशाज़ा, विविध श्राभूषणों से सजी धजी, बड़ी
मनोहर लगती है प्रवेश द्वार पर एक बड़ा सा बट-वृत्त है। यह
बृक्त पूरी बमशाला का केन्द्रिय स्थान है । हर यात्री पहले यहाँ
हो लेता है तब वद्द भीतर जाने पाता है। वट-बृक्त के नीचे एक
घहुत बड़ा चबूतरा है। उसी चबूतरे पर युवक संग्राम ओर वह
पुजारी बैठे बात कर रहे हैं ।
संग्राम अन्त में बोला ' तुम ठीक कहते हो दादा, में तुम्ारी
वातों पर अमल करूगा। पर शअ्राज़ तुमसे उस हवेली में होने
वाले प्रकाश का भेद भी जान लेना चाद्दता हूँ, तुम बहुत दिनों से
यह बात टाक् रहे हो, पर आज तो तुम्हें बताना द्वी पड़ेगा 1”
पुजारी कछ सोच विचार के बाद बोला “कल बता दूंगा।
ओर दूसरे दिन सुब्रह पुजारी चबूतरे पर बेठा था। हवेली में
प्रकाश को कहानी सुनने को जितने भी यात्री लालायित थे, सभी
उसे घेर कर बेठे थे। वह बोला, कभी उस हवेली के दिन बड़े
अच्छे थे। दिगविजयसिंद्द की सारे देद्दात में तूती बोलती थी ।
राजधानी क निकट होने के नाते वे बड़ सम्मांनत सममे जाते
थे। यह उसी ठाकर की हवेली है। ठाकर ने बुदौनी मँ व्याह
क्या किया, अपने लिए एक नया संकट मोल ले लिया। नई
ठकराइन बड़ी ककशा थी । ठाकर से एक दिन भी न पटी । जब
से ठकराइन एक बालक की माँ हुई, वह ठाकर का और भी
विरोध करने लगी । उधर बेचारा ठाकर उसे खब मानता था।
जब से ठकुराइन ने, ठाकुर के लिए एक उत्तराधिकारी दे दिया
तब से, ठार उसे प्राणो से भी अधिक चाहने लगा । ठाक्र था
भौ बड उदार हृदय का व्यक्ति !
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