आधुनिक हिंदी कविता में प्रेम और श्रृंगार | Adhunik Hindi Kavita Me Prem Aur Shrangar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वासना पुरुष २३ नये छवि ने स्पष्ट ही छायावादी प्रियतम दवधाटों का विरोध क्षिया झौर स्पष्ट स्वरों में स्हा हाँ সম जिया प्रम स्पा हैमेन घरदान समझ भमिचाए सलिपा है मेने । प्रपमी ममता को स्वय द्धुवा कर उसमें यजित भदिरा को देवि पिया है मेने । में दोवाना तो भूल चुरा সদন को में दृढ़ रहा हैँ उस खोए सपने को देकर में भ्रपनों चाहू झाह छाया हूँ प्राणो को वाडी हष हार प्ाया हूँ। हैं क्सक रहो प्रव उर में बोती घातं घिर प्ातो हैं पोडा बन सोई रातें। मेरे शोदनं मं घुधला-सा सूनापन हूं उमड़ पड यन रप्र शो ष्रतातं। --म-वरीचयणम्ना उसने सीघ ही प्रियतमा स बातें प्रारम कर दो । हमारे यहा ता झपनी स्वी से भो रुथत' सामने बातें करता वजित था प्रर कटा नेया मोड रेता भ्राया कि रसनं बातें ठा गो हों बी भी दो एकदम प्रम का और उत्तकी भी घपणाक्ले हूए 1 तत्ण खत था जीवन के प्रत्येर হা में नवीनता चाहता था । वह यूरोपीय सस्दृति क॑ प्रभाव म॑ ग्रा रहां था। यह दापत्य जीवन के नये मान्‌टण्डो से परिचित हो रहा था गक्‍्मपनी प्रादीन वहुकृटुम्व-यालन करनदाली व्यवस्था को खाड-वष्ड होते दख रहा था। तिस पर कवि उस समय राजनीतिझ परामंव में था अपन व्यक्तिगत जीवन में कुछ उसे मिला भी नथा बति वह उसपर खतोप कर लता । इमालिए उसक्षे प्रम दी ध्रभिष्पदित एक मु मलाहट बनगर भी हुई कि मैं दोवाना हू मरे पास कुछ नहों है घस उसके पासं दिर नी विन्हा विगत स्घप्नो का भण्डार बाकी पा तितक्षा वह बार-वार हवाला टिया करता था | मभयवस्तीचररा वर्मा बच्चन भौर नरम्द्र क॑ एंसे स्वर प्राय ममंकालीन ही थे । भ्रम यहा मानो एक जुमारू शवित बनकर उतरा । उसमे समयता उतनी नहीं घी जितनी उत्त्टता | व्यक्तिपरक भसताप तीद्गठम था न्तु बस्तुत' वह युग या ही बिम्द था जिसवा भी प्रतिनिधित्व वास्तव में मध्यवर्गाप युवक-बंग करता था। नाटे के प्रति रृषटिकोएा वदलन लमा । ग्रव बह नारो बे प्रम का याचंद्र घना में जम एम का याचरक हैँ तुम स्नेहरयी क्ल्याणोी हो। मे प्रसं प्रेम षा प्रभिलाधौ चुम मीरन्दरद-दिवानी ष्ट!




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