मानदण्ड | Mandand

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : मानदण्ड  - Mandand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वनफूल - Vanful

Add Infomation AboutVanful

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सानदण्ड १७ “तो पहले उसीको खतम कर लो कज को यहां भेज दो ।“ कज भ्रां खडा हृभ्रा । हिरिण्यगभें ने कहा, “इनका सामान दक्िण- वाले कमरे में है शायद, उसे ले आभशो। खरिणी से पूछ लो, वह बता देगी। कज चला गया । तुंगश्री विस्मय से बोल उटी, “मेरा सामान यहां व्यो मगा रहै है? “यह दिखाने के लिए कि क्‍यों आज आपको गाड़ी से जाने नहीं दिया गया । हमारी फैक्टरी का नक्शा शायद आपका सूटकेस खोलते ही निकल आएगा और उसके साथ अगर इस चिट्ठी का अर्थ जोड़ लें तो आप समझ जाएंगी कि आपको क्‍यों रोका गया है।” हिरण्यगर्भ दराज़ से एक चिट॒ठी निकाल लाए श्रौर उसे पष सुनाया । “तुंगश्चीदेवी कल सवेरे यहां से रवाना हो जाएंगी । इन लोगों ने आपकी फैक्टरी को डाइनामाइट से उड़ा देने का निश्चय किया है। तुंगश्री- देवी श्रापकी फैक्टरी का नक्शा लाने जा रही हैं। शायद भ्रापकी फैक्टरी के ही किसी आदमी ने नक्शा तैयार कर रखा है। तुंगश्नी अ्रपनी श्रांखों से सारी चीज़ें देखने के लिए और वह नक्शा लाने के लिए खुद जा रही हैं। वे एक प्रसिद्ध आतंकवादी महिला हैं। उनको पहचानना मुश्किल नहीं होगा, क्योंकि वे सुन्दरी हैं और उनके बायें गाल पर एक छोटा-सा तिल है। देखते ही आप पहचान जाएंगे।* चिट्ठी पढ़कर हिरण्यगर्भ ने तुंगश्नी की शोर देखा । “हलिया हबह मिल रहा है, तो मैं यह भी उम्मीद करता हूं कि फैक्टरी का नक्शा भी आपके सूटठकेस में मिलेगा। अगर वह मिल गया तो श्राशा है, मेरे व्यवहार का श्र्थं भी श्रापके सामने स्पष्ट हौ जाएगा 1 तुगश्री का चेहरा एकबारगी फक्‌ पड़ गया था, भ्रौर फिर धीरे-धीरे ठीक हो गया। वे प्रकृतिस्थ होने की कोशिश कर रही थीं 1 वे समक रही थीं कि आत्मगोपन की चेष्टा अ्रब व्यर्थ है। सारी बात अब एकाएक उड़ाई नहीं जा सकती, हंसी-मज्ञाक से उसे कुछ हल्का-भर किया जा सकता है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now