पंच दशी | Panch Dashi

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Panch Dashi by यशपाल जैन - Yashpal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्य और अहिसा १३ क्या भ्ाक्माहत्या कर लें? तो भी निस्तार नहीं है। विचार में देह के साथ पंसर्ग छोड़ दें तो अन्त में देह हमें छोड़ देगी | यह मोह रहित स्वक्ष पत्यनारायण हैं| यह दर्शन अधीरता से नहीं होते | यह समझकर कि देह इमारी नहीं हैं, वह हमें मिली हुई धरोहर है, इसका उपयोग करते हुए हमें अ्रागे बहना चाहिए | मे सरल चीज लिखना चाहता था, पर हो गई है कठिन | फिर भी जिसने अहिंसा का थोड़ा सी बिचार किया होगा उसे समझने में कठिनाई न पढ़नी चाहिए | इतना तौ सबको समभ लेना चाहिए कि अहिंसा के बिना सत्य की खोज সলমন है | अहिंसा ओर सत्य ऐसे ओतप्रोत है जेषे छक्के के दोनो रुख, था चिकनी चकती के दो पहलू | उसमें किसे उलटा कहें, किसे सीधा १ किर भी अहिंसा को साधन ओर सत्य को साध्य मानना चाहिए। साधन अपने हाथ की बात है, इससे अहिंसा परम धर्म मानी गई । सत्य परमेश्वर हुआ । साधन की चिंता करते रहने पर साध्य के दर्शन किसी दिन कर ही लेंगे। इतना निश्चय करना, जग जीत लेना है । हमारे मार्ग में चाहे जो संकट आए, নাল্গ रृष्टि से देखने पर हमारी चाहे कितनी ही हार होती दिखाई दे, तो भी हमें विश्वास ने छोड़कर एक ही मंत्र जपना चाहिए--खसत्य है, वही है, वही एक परमेश्वर है । उसके सात्ञात्कार का एकही मार्ग है, एकही साधन अहिंसा हैं, उसे कमी ने छोड़े गे । जिस सत्यस्वृरूप परमेश्वर के नास पर यह प्रतिज्ञा की है वह दमे उपकर पालन को बतं दं '




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