मन के मोती | Man Ke Moti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
137
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गायन, तजे लावसी )
द्रादिशक्रि की महाशक्ि को नमस्कार हे वारंवार
भारत का कल्याण करे वह पहना उसे श ्रि-जय-दार रेरा
(३.१; `
दिमामथिः! हम कैसे गावे तेरी गुण-गरिमा का गान
हममे भरे हुए हैं केवल अल्प बुद्धि-विद्या-बल-ज्ञान
ऐसी ग्रु क्षणग्रभा#पर, जो है अचला प्रभा-निधान
विजय चाहते हैं हम पाना होकर लघु खद्योत-समान
_तूही है बस करने वाली आयणों सें भी असु-सन्चार
आदिशक्नि की महाशक्रि को नमस्कार है वारंवार।
(२)
. जिसका अज्जभुर परब्रह्म हे, हर-विधि दो दल हैं. सुकुमार ।
हैं जिसके चौदह लोकों की शाखाएं शोभा-आगार |
विजली व वी
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